“मौसम ने मधुमास सँवारा”
जल में-थल में, नीलगगन में,
छाया है देखो उजियारा।
सबकी आँखों में सजता है,
रूप बसन्ती प्यारा-प्यारा।।
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कलियाँ चहक रही उपवन में,
गलियाँ महक रही मधुबन में,
कल-कल, छल-छल करती धारा।
सबकी आँखों में सजता है,
रूप बसन्ती प्यारा-प्यारा।।
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पंछी कलरव गान सुनाते,
तोते आपस में बतियाते,
दहका टेसू बन अंगारा।
सबकी आँखों में सजता है,
रूप बसन्ती प्यारा-प्यारा।।
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सूरज जन-जीवन को ढोता,
चन्दा शीतल-शीतल होता,
दोनों हरते हैं अंधियारा।
सबकी आँखों में सजता है,
रूप बसन्ती प्यारा-प्यारा।।
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भँवरे गुन-गुन करते आते,
कलियों फूलों पर मँडराते,
मौसम ने मधुमास सँवारा।
सबकी आँखों में सजता है,
रूप बसन्ती प्यारा-प्यारा।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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