कहानी

अपशगुन

 

श्वेता की हथेली पर शगुन की मेंहदी लगाते हुए माधुरी के स्मृति पटल पर अपनी सीता भाभी की बातें खूबसूरत चलचित्र की तरह उसके मन को अपनी तरफ़ खींच ले गईं जब माधुरी के मेंहदी के दिन उसकी दोनों हथेलियों को आपस में जोड़ते हुए रेखाओं से अर्ध चाँद बने देखकर कहा था – ” मेरी चाँदनी सी ननद का दूल्हा भी चाँद सा ही होगा। और फिर किसी रेखा पर नज़र पड़ते ही उनके चेहरे का भाव अचानक बदलने लगा तो माधुरी ने पूछ ही लिया क्या हुआ भाभी..?
कुछ नहीं बीबी जी ये दोनों रेखाएँ थोड़ी अलग – अलग हैं यह आपस में सटी होतीं तो अच्छा रहता।
तब माधुरी ने सीता भाभी से कौतूहल वश पूछा था .. “सटा होता तो क्या होता भाभी..?”
“दूल्हा बहुत ज्यादा प्यार करता।”
“तो क्या नहीं करेगा मुझे प्यार माधुरी ने थोड़ा अभिनय करते हुए रुआंसी आवाज़ में पूछा..?”
“अरे नहीं ऐसी प्यारी सी सूरत को देखकर कौन भला नहीं प्यार करेगा? सीता भाभी ने उसे लाड़ दिखाते हुए झूठ तो बोल गईं लेकिन उनके गुलाबी मुखड़े के पटल पर  चिन्ता की स्याह  अक्षरों को माधुरी ने पढ़ लिया था । तभी सीता भाभी ने मेंहदी की कूप्पी कलम से उसकी हथेलियों पर ब्रम्हा की तरह ही किस्मत लिखते हुए कहा – “मेंहदी जितनी ही रचेगी दूल्हा उतना ही मानेगा।” तब माधुरी ने भी भाभी को ज़रा छेड़ते हुए कहा – “भाभी कुछ टोटके कर दीजिये न कि मेरी हथेलियों पर मेंहदी भी रच जाये और दूल्हा भी माने और भाभी ने अपनी आँखों के कोरों से काजल लेकर माधुरी के गालों पर लगा दिया था। उस समय माधुरी मेंहदी और पति के प्रेम के रंगों का आपसी सम्बन्धों की गुत्थियाँ सुलझाते हुए कल्पना के घोड़े पर सवार होकर हथेली पर लिखे गये नाम वाले अजनवी राजकुमार के साथ सैर करने लगी थी। उसके हथेलियों पर कल्पित प्यार का रंग धीरे-धीरे चढ़ रहा था और वह मेंहदी की सुगंध में मदहोश हुए जा रही थी फिर उसे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
जब माधुरी की नींद खुली तो उसके हथेलियों की मेंहदी सूख चुकी थी और भाभी ने मेंहदी को छुड़ाने के क्रम में आस्वस्त तो हुईं थीं फिर भी उन्होंने मेंहदी छुड़ाने के बाद हाथों में सरसों का तेल लगा दिया ताकि मेंहदी और भी रचे।
माधुरी की हथेलियों में भविष्य के प्यार के साथ – साथ विश्वास का भी रंग चढ़ने लगा था जिसकी आभा से उसकी आँखों में चमक और गालों पर लाली स्पष्ट दिखाई दे रही थी । और वही विश्वास की लाली उसकी गृहस्थी में गहरा उतरता चला जा रहा था। तभी तो माधुरी के विवाह के बाद किसी ने उसके और उसके पति के मध्य शक की बीज बोने की कोशिश भी की तो उसका यकीन टस से मस नहीं हुआ। बल्कि उसने तो कहने वालों से यह भी कह दिया कि जो भी हो आप मुझे मेरे विश्वास के सहारे जीने दीजिये। मेरे पति सिर्फ मुझे प्यार करते हैं यह भ्रम ही सही पर मैं इसे टूटने नहीं दूंगी यह कह कर कहने वालों का मुह बंद कर देती थी।
पर आज अपनी बेटी को लेकर उसके मन सागर में विश्वास की कस्ती डोलने लगी थी। विवाह तय करने से पहले कई बार श्वेता से पूछा भी था कि जिंदगी भर निभ जायेगी न शशांक से तुम्हारी..? ”
और श्वेता ने कहा था -” हाँ ममा ट्रस्ट मी। वी लव इच अदर। ”
माधुरी ने भी प्रत्युत्तर में कहा  -” हाँ बेटा ट्रस्ट है तुम पर लेकिन आजकल के मैरीज को टूटते हुए देखती हूँ तो पता नहीं क्यों बहुत डर सा लगता है। एक हम थे कि अजनवी से भी जीवन भर निभा लेते थे और आज जी जान से प्यार करने वालों की भी शादियाँ दो चार साल में ही टूट के कगार पर खड़ी हो जा रही हैं। इसकी एक वजह यह थी कि सम्बन्ध सिर्फ़ लड़का लड़की से ही नहीं होता था बल्कि उसके परिवार और रिश्ते नाते-रिश्तेदारों से भी जुड़ जाते थे जिससे किसी भी तरह की समस्या आने पर पूरा परिवार उस समस्या को सुलझाने में लग जाता था। और सबसे बड़ी बात कि लड़के के खानदान के बारे में पता लग जाता था लेकिन……….
“नो प्राब्लम ममा आई एम इन्डिपेंडेंट, श्वेता ने बीच में ही माँ की बात काटते हुए कहा और माधुरी आगे कुछ कहना चाहकर भी चुप रहना ही उचित समझा ।
” ममा कहाँ खो गईं शगुन कीजिये न.. श्वेता की आवाज़ से माधुरी की तंद्रा टूटी और मेंहदी से एक छोटा सा लकीर खींचकर प्रोफेशनल मेंहदी लगाने वाली ब्युटीशियन को कुप्पी पकड़ाते हुए उससे पूछ बैठी.. मेंहदी रचेगी न..?”
हाँ मैम बहुत रचेगी ।मेंहदी को बस आधे घंटे ही रखकर उतार देना है।
आधे घंटे में ..? माधुरी ने अचंभित होते हुए कहा …. एक हम लोगों का जमाना था कि  मेंहदी की पत्तियाँ तोड़ कर सिल पर महीन पीस कर सीक के सहारे  हथेलियों पर उकेर दिये जाते थे फूल पत्तियों के मध्य पिया का नाम और हम करते थे घंटो मेंहदी के सूखने का इंतजार।  लेकिन एक बार चढ़ गई तो उसका रंग महीनों रचा रहता था हथेलियों पर । ”
” तभी बगल में बैठी एक पड़ोसन ने कहा अब वो बात नहीं रही जी। आजकल की रेडिमेड मेंहदी का रंग जितना जल्दी चढ़ता है उतना ही जल्दी उतरता भी है । ”
यह बात सुनकर माधुरी के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें और भी गहरी हो गईं। सोचने लगी कहीं मेंहदी की तरह प्रेम का रंग तो नहीं उतर जायेगा न?
तभी अचानक ट्रे में कोल्ड-ड्रिंकस लेकर आती हुई मालती का पाँव फिसला और श्वेता के मेंहदी लगे हथेलियों पर गिर गया। सभी आवाक हो गये कि यह कैसा अपशगुन। लेकिन श्वेता ही स्थिति को सम्हालते हुए बोली कोई बात नहीं आधे घंटे में बस पाँच मिनट ही बाकी हैं मेंहदी रच जायेगी। मालती श्वेता के हथेलियों से मेंहदी हटाकर सरसों का तेल लगाने लगी।
खैर मेंहदी थोड़ी हल्की ही सही मगर रची। श्वेता ने माधुरी को अपने मेंहदी लगे हुए दोनों हाथ दिखाते हुए कहा – “मम्मा बेकार आप परेशान हो रहीं थीं देखिये तो कितनी रची है मेंहदी । ज्यादा रचती तो मेंहदी का रंग लाल की जगह काला हो जाता।”
माधुरी निश्चिंत होकर सभी रश्में निभाने लगी। समय आ गया वरमाला के रस्म की। वर पक्ष और कन्या पक्ष दोनो ही काफी उत्सुकता से अपनी-अपनी कमान सम्हाले हुए थे। श्वेता जैसे ही वरमाला डालने को हुई शशांक ( दूल्हे ) के दोस्त उसे उठाकर उपर ले जाते। फिर कन्या पक्ष वाले भी कहाँ कम थे वे भी दुल्हन को उठाकर वरमाला डलवाने लगे। नोकझोंक में वरमाला टूट गया और श्वेता की सहेलियाँ वरमाला को जोड़ने लगीं।
माधुरी के चेहरे पर फिर से चिंता की लकीरें उभर आयीं। सोचने लगी कि कल मेंहदी पर पानी गिरना और अब माला का टूटना क्या कोई अपशगुन का पूर्वाभास तो नहीं है न? मन ही मन माधुरी ईश्वर से श्वेता के सुखद भविष्य की प्रार्थना करने लगी।
विवाह सम्पन्न हुआ और आ गई बिदाई की घड़ी। माधुरी का रो – रो कर बुरा हाल था। श्वेता की आँखों से भी आँसुओं की धारा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। माधुरी ने शशांक की तरफ एक याचिका की तरह देखते हुए मन ही मन अपनी बेटी को खुश रखने का गुहार लगा रही थी।
चार दिनों बाद चौथारी पर श्वेता और शशांक आये। हर माँ की तरह माधुरी ने भी अपनी बेटी से पूछा – “तू खुश तो है न?”
“हाँ माॅम, शशांक और लड़कों से डिफरेंट है। यह मुझे दिल से प्यार करता है, जबकि अधिकांश लड़के सिर्फ शरीर से ……. आप निश्चिंत रहिये बहुत खयाल रखता है शशांक मेरा।
” क्या तो तुमने भी किसी को शरीर ………….. कितने लड़कों से रिलेशन था तुम्हारा?”
” ओह माम, तुम भी न बाल की खाल उधेड़ती हो। आज का जमाना बिल्कुल डिफरेंट है। अब साथ जीयेंगे साथ मरेंगे वाला जमाना गया। हमारे जमाने के लड़के – लड़कियां प्रेक्टिकल हैं। इसी वजह से तो लीव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद ही शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं ताकि पटे तो पटे वर्ना आराम से अलग हो जाओ। विवाह के बाद से अलग होने में कितना कानूनी दांवपेच होता है आपको तो पता ही होगा। ”
श्वेता शशांक चले गये। मोबाइल से तो करीब करीब दिन में तीन चार बार बातें हो ही जाया करती थी माँ बेटी की। लेकिन माधुरी का जी नहीं भरता था इसीलिए बार बार श्वेता और शशांक को आने के लिए कहती थी तो श्वेता व्यस्तता का बहाना कर टाल दिया करती थी।
फिर माधुरी ने सोचा कि क्यों न बच्चों को सरप्राइज दी जाये इसलिए उसने उन्हें बिना बताये ही फ्लाइट का टिकट बुक करा लिया । शशांक और श्वेता के लिए उनके मनपसंद गिफ्ट के साथ – साथ मिठाइयाँ भी भरने लगी। लेकिन फ्लाइट में एक सीमा तक ही सामान ले जाया जा सकता है इसलिए मन मसोसकर रह गई। रास्ते भर मन में सुन्दर – सुन्दर कल्पना करने लगी।
गन्तव्य तक पहुंचकर उसने डोर वेल बजाया तो दरवाजा खोलते हुए श्वेता चौंक गई – “अरे मम्मा तुम.. बताया क्यों नहीं.?”
“तो क्या सरप्राइज तुम लोग ही दे सकते हो मैं नहीं..?” माधुरी ने अपने होठों पर विजयी मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
” ऐसी बात नहीं है मम्मा, आपको परेशानी हुई होगी न यहाँ तक पहुंचने में ?”
क्यों भला ? “मैं तुम्हारी स्मार्ट मम्मा हूँ लोकेशन डालकर ओला कैब बुक करके आ गई न । ”
” मान गई मम्मा आपको। रुकिये मैं आपके लिए काॅफी बनाकर लाती हूँ।”
काॅफी पीते समय माधुरी कई बार शशांक के बारे में पूछने की कोशिश कर रही थी लेकिन श्वेता बहुत ही साफगोई से मम्मी की बातें टालकर दूसरी बातें करने लगती थी। शाम से रात हो गई लेकिन शशांक नहीं आया।। माधुरी ने पूछा तो श्वेता ने बताया कि शशांक आउट आॅफ स्टेशन है। लेकिन माधुरी श्वेता के उत्तर से सन्तुष्ट नहीं थी।
माधुरी ने अपना पर्स रखने के लिए वार्डरोब का ड्रावर खोला तो उसमें एक पेपर मिला जिसे पढ़ाकर उसके हाथ पांव कापने लगे।। वह कागज लेकर सीधे श्वेता के पास गई और गुस्से तथा दर्द के मिले जुले स्वर में पूछा – “यह क्या है श्वेता ? अभी तो तुम्हारे विवाह के पूरे एक साल भी नहीं हुए और तलाक ?
इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले तुमने मुझसे सलाह लेना भी उचित नहीं समझा?
क्या इतनी पराई हो गई हूँ मैं?”
मम्मी का प्रश्न सुनकर श्वेता की आँखों में आँसू भर आये। उसने कहा – “क्या बताती मम्मा मैं तुमसे….? ”
” हाँ – हाँ क्यों बताओगी.. तुम तो इन्डिपेःडेंट हो न? मुझसे ज्यादा समझदार हो। तुम्हारी अपनी लाइफ है। मैं कौन होती हूँ… “माधुरी अविराम बोले जा रही थी।
” नहीं मम्मा ऐसी बात नहीं है। मैं तुम्हें तकलीफ़ देना नहीं चाहती थी।
“दिस इज माई मिस्टेक।”
शशांक वाज गे।”
“क्या?” माधुरी के माथे पर दर्द की रेखाएँ खिंच गईं और आँखों में आश्चर्य के आँसू।
” हाँ मम्मा ये बात शशांक ने ही मुझे बताई जब मैं एक रात सारे लाज शर्म छोड़कर मैंने ही उससे फिजिकल रिलेशन बनाने की कोशिश की। मैंने उसपर चिल्लाया भी कि” तुमने मेरी जिंदगी क्यों बर्बाद की? ”
तो शशांक ने कहा कि मेरी माँ ने मुझे अपनी कसम दिलाकर मुझे विवाह करने के लिए मजबूर कर दिया था। मैंने भी सोचा कि तुम बाकी लड़कियों से अलग हो इसलिये शायद मेरा प्यार ही तुम्हारे लिए काफी हो लेकिन तुम भी बाकी लड़कियों की तरह ही निकली। तुम चाहो तो अपनी संतुष्टि के लिए किसी के साथ भी फिजिकल रिलेशन बना सकती हो। ”
शशांक की ये बात मुझे गाली की तरह लगी और मुझे उससे घिन्न आने लगी। अगर वे शादी के पहले मुझसे सबकुछ सच – सच बता दिया होता तो शायद मैं उसके प्रेम के सहारे जी लेती लेकिन ये तो सरासर मेरे साथ धोखा है न मम्मा?
मुझे माफ़ कर दो”
माधुरी ने श्वेता को अपने छाती से लगाये रखा । कुछ देर तक दोनों माँ बेटी की आँखों से अश्रु की बरसात होती रही। उसके बाद माधुरी ने श्वेता से कहा मैं तुम्हारे निर्णय के साथ हूँ। तुम सामान पैक करो हम यहाँ अब एक पल भी नहीं रुक सकते।

*किरण सिंह

किरण सिंह जन्मस्थान - ग्राम - मझौंवा , जिला- बलिया ( उत्तर प्रदेश) जन्मतिथि 28- 12 - 1967 शिक्षा - स्नातक - गुलाब देवी महिला महाविद्यालय, बलिया (उत्तर प्रदेश) संगीत प्रभाकर ( सितार ) प्रकाशित पुस्तकें - 20 बाल साहित्य - श्रीराम कथामृतम् (खण्ड काव्य) , गोलू-मोलू (काव्य संग्रह) , अक्कड़ बक्कड़ बाॅम्बे बो (बाल गीत संग्रह) , " श्री कृष्ण कथामृतम्" ( बाल खण्ड काव्य ) "सुनो कहानी नई - पुरानी" ( बाल कहानी संग्रह ) पिंकी का सपना ( बाल कविता संग्रह ) काव्य कृतियां - मुखरित संवेदनाएँ (काव्य संग्रह) , प्रीत की पाती (छन्द संग्रह) , अन्तः के स्वर (दोहा संग्रह) , अन्तर्ध्वनि (कुण्डलिया संग्रह) , जीवन की लय (गीत - नवगीत संग्रह) , हाँ इश्क है (ग़ज़ल संग्रह) , शगुन के स्वर (विवाह गीत संग्रह) , बिहार छन्द काव्य रागिनी ( दोहा और चौपाई छंद में बिहार की गौरवगाथा ) ।"लय की लहरों पर" ( मुक्तक संग्रह) कहानी संग्रह - प्रेम और इज्जत, रहस्य , पूर्वा लघुकथा संग्रह - बातों-बातों में सम्पादन - "दूसरी पारी" (आत्मकथ्यात्मक संस्मरण संग्रह) , शीघ्र प्रकाश्य - "फेयरवेल" ( उपन्यास), श्री गणेश कथामृतम् ( बाल खण्ड काव्य ) "साहित्य की एक किरण" - ( मुकेश कुमार सिन्हा जी द्वारा किरण सिंह की कृतियों का समीक्षात्मक अवलोकन ) साझा संकलन - 25 से अधिक सम्मान - सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान ( उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ 2019 ), सूर पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 2020) , नागरी बाल साहित्य सम्मान बलिया (20 20) राम वृक्ष बेनीपुरी सम्मान ( बाल साहित्य शोध संस्थान बरनौली दरभंगा 2020) ज्ञान सिंह आर्य साहित्य सम्मान ( बाल कल्याण एवम् बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल द्वारा 2024 ) माधव प्रसाद नागला स्मृति बाल साहित्य सम्मान ( बाल पत्रिका बाल वाटिका द्वारा 2024 ) बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य सेवी सम्मान ( 2019) तथा साहित्य चूड़ामणि सम्मान (2021) , वुमेन अचीवमेंट अवार्ड ( साहित्य क्षेत्र में दैनिक जागरण पटना द्वारा 2022) जय विजय रचनाकर सम्मान ( 2024 ) आचार्य फजलूर रहमान हाशमी स्मृति-सम्मान ( 2024 ) सक्रियता - देश के प्रतिनिधि पत्र - पत्रिकाओं में लगातार रचनाओं का प्रकाशन तथा आकाशवाणी एवम् दूरदर्शन से रचनाओं , साहित्यिक वार्ता तथा साक्षात्कार का प्रसारण। विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर अतिथि के तौर पर उद्बोधन तथा नवोदित रचनाकारों को दिशा-निर्देश [email protected]