कविता

समर्पित

नाउम्मीद होते  आंखो से

टकटकी लगाए
देख रहे हैं रस्ता अपनों का
बड़े लाड़ से पाला था जिनको
असंख्य अभिलाषा पूर्ण किए जिसके
आज भूले बैठे हैं वो उनको !
धुंधली आंखें,थकती सांसें
बड़े बेबसी से याद करते
अपने आंखों के तारों को
दिल में मिलने की चाह लिए
हर दिन देखें राह उनकी
जाने वो कब आए ?
इनकी अतृप्त इच्छाओं को
कौन पूर्ण कर जाए!
बाद मरने के
अग्नि में कौन समर्पित कर जाए !
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P