कविता

तुम आ जाना

कभी लौटने का इरादा करो तो
एतबार का इत्र साथ ले आना।
फिर भर कर अपनी बाहों में
मुझको भी महका जाना।
जाना है तो तुम बेशक जाओ
फिर सारा सामान भी ले जाना।
जो छोड़ गए हो मुझ में खुद को
उस को मुझमे ही मत भूल जाना।
अभी अंधेरे में हाथ छुड़ा रहे हो
बस इतनी उम्मीद छोड़ जानाl
मैं टहनी से चांद तोड़ लाऊंगी
उजाला हो फिर तुम आजाना।
ये वक्त नहीं समझने समझाने का
सारे गिले शिकवे यही छोड़ जाना
फिर कभी साथ बैठेंगे कहने सुनने
तू वक़्त से लम्हें चुराकर आ जाना
इसी मोड़ पर मिलेगी दामिनी तुम्हे 
याद आए तो ढूंढने कहीं मत जाना

— दामिनी सिंह ठाकुर

दामिनी सिंह ठाकुर

इंदौर, मध्य प्रदेश