पहचान
भूल रहे हैं हम अपनी पहचान
अपनी वजूद को समझो इन्सान
चलो नई एक गुलशन को सजायें
भारतीयता की पुरानी पहचान जगायें
संस्कार से है अपना जहाँ पे रिश्ता
पड़ोसी में भी अपनापन है दीखता
तिलक चोटी का है पुराना संस्कार
पूर्वज ने दी है धार्मिक् हिन्दू आधार
ऋषि मुनियों का है यह देश हमारा
तप त्याग बलिदान है हमें प्यारा
मर्यादा की हम है सदैव पुजारी
दुश्मन से हम कभी ना है हारी
आर्य पुत्र हैं हमारी संस्कृति पुरानी
वीरों महापुरूषों से भरी है कहानी
भारत भूमि ने दी है अनेक ज्ञानी
हम ने कभी किसी पर ना की मनमानी
शांत सौम्य है हमारी यह प्रकृति
हम ने बदल दी है नक्से की आकृति
जब किसी ने हमको है ललकारा
दुश्मन को हमने रणभूमि में पछाड़ा
रामराज्य की कल्पना है हमारी
ना चली है जहाँ कोई भी गद्दारी
शांतिप्रिय हैं हम भारत वंशी
कान्हा ने बजाई है जहाँ वंशी
युद्ध का हम नहीं हैं पुजारी
पर जब आया है जीत हुई हमारी
हम हैं ज्ञानी की धरती के संतान
विश्वगुरू है आदि से हमारी पहचान
हम हैं मॉ भारती के वीर सपूत
सोने में जगाये हैं जीत का भूत
— उदय किशोर साह