संवैधानिक दोहे
लिए तिरंगा आ गया ,भारत का गणतंत्र
सारे मजहब एक हैं, फूंक रहा यह मंत्र ।।
प्रेम भाव सबसे रखो ,करो मान सम्मान
समता का विचार हो ,कहता यही विधान ।।
बंधुत्व की हो भावना, हो सभी खुशहाल
वे सरहद भी याद हो ,जहां वतन के लाल ।।
इंद्रधनुष में समाए ,जैसे कई कई रंग
संविधान भी एक है, भिन्न-भिन्न है अंग ।।
अंतर्निहित दृष्टि का, पावन यही प्रकाश
यही देश की आत्मा, और यही विश्वास ।।
सारे नियम विधान भी ,सबको अंगीकार
नैतिकता से जुड़े ,हैं मौलिक अधिकार ।।
संविधान पहचान है,दर्शन भी संविधान
जय घोष कर बोलिए ,जय जय हिंदुस्तान!।।
— सतीश उपाध्याय