ग़ज़ल
रंग, ख़ुश्बू, अदा न मिलती है
हुस्न तेरी हवा न मिलती है
ख़ूब दीवानगी हमारी थी
अब कहीं भी ज़रा न मिलती है
घर रहो तो उदास तन्हाई
घूमने से थकान मिलती है
एक दिल की तलाश करता हूँ
हर तरह की दुकान मिलती है
उम्र गुज़री फ़क़त हमारी क्यों
चाह दिल की जवान मिलती है
एक तरकश बग़ैर तीरों के
एक टूटी कमान मिलती है
बख़्शती थी गुमान दुनिया जो
तोड़ती वो गुमान मिलती है
— केशव शरण