कविता

तुम जीवन हो

कविता की मधुरिम भाषा हो तुम।
प्रेमिल हृदयों की आशा हो तुम।
सौंदर्य शास्त्र का आधार सुखद,
सुंदरता की परिभाषा हो तुम।।
पग चिह्न बनाती तुम खास डगर।
उर उपजाती उत्साह बन रविकर।
थके चरण, हारे मन में हरदम,
जीवन का रचती विश्वास प्रखर।।
धरा में हो तुम चंद्र ज्योति विमल।
जीवन तुम सुमधुर शुभ प्रीति प्रबल।
भावों की सुरभित सरिता में तुम,
नेह-धार मृदु, प्रेम सुधा सम्बल।।
— प्रमोद दीक्षित मलय 

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]