रहते सूरज इतनी दूर
रहते सूरज इतनी दूर।
फिर भी दें गर्मी भरपूर।।
देर नहीं पल की भी करते।
अंबर में तुम नित्य विचरते।।
दुनिया में फैलाते नूर।
रहते सूरज इतनी दूर।।
गर्मी वर्षा या हो शीत।
कभी नहीं होते विपरीत।।
सूर सदा रहते हैं सूर।
रहते सूरज इतनी दूर।।
सबसे पहले तुम जग जाते।
उषा – किरण ले हमें जगाते।।
नहीं कभी रहते मदचूर।
रहते सूरज इतनी दूर।।
तुम्हें न आए ढोल बजाना।
अपने गुण अपने मुख गाना।।
मौन चलो तुम बिना गरूर।
रहते सूरज इतनी दूर।।
‘शुभम्’ कर्म के शिक्षक प्यारे।
कर्मठता में सबसे न्यारे।।
सौर लोक में हो मशहूर।
रहते सूरज इतनी दूर।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्