ग़ज़ल सच किसी में निहा नहीं होता
तुम नही तो जहाँ नहीं होता
बिन तेरे ये समाँ नहीं होता
दूर रह कर करीब हो दिलके
प्यार कह कर बयाँ नही होता
मूँद ली जब लजा के यों पलकें
रूप तेरा बयाँ नहीं होता
प्रीत में और प्रीत घुलती है
सच किसी में निहाँ नहीं होता
साथ कुछ देर और चलने से
हाल दिल का अयाँ नही होता
प्यार जिसका जवाँ नही होता
शक्स वह शखकमाँ नहीं होता
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”