पाँव साकित हो गए किसी को देख कर,
बिछाई चांद ने चाँदनी किसी को देख कर।
वो एक शख्स जो दुआ सा लगने लगा है,
चल पड़ा एक रास्ते किसी को देख कर।
गम की रात इश्क़ में नक़्श-ए-जफ़ा न हो,
दिलमें खलिश हो रही किसी को देख कर।
ख़ुश्क गुज़रा ढूंढते तुमको अब के सावन,
सावन की भीगी पलकें किसी को देख कर।
आँख जैसे बादल,दया का दरिया बहा दिया,
एक धूप का टूकड़ा झरे किसी को देख कर।
दर्द की कायनात फिर भी दिल में रोशनी,
छत पर जलाया दिया किसी को देख कर।
— बिजल जगड
साकित ~ स्तब्ध
नक़्श-ए-जफ़ा ~ imprint of infidelity