“गुलशन का खिलता गलियारा”
रूप बसन्ती प्यारा-प्यारा, अच्छा लगता है।
जीवन में छाया उजियारा, अच्छा लगता है।।
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उपवन में चहकीं कलियाँ, जब महक लुटातीं हैं,
मधुबन में महकी गलियाँ, तब बहुत लुभाती हैं,
कल-कल, छल-छल करता धारा, अच्छा लगता है।
जीवन में छाया उजियारा, अच्छा लगता है।।
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पंछी कलरव गान सुनाते, जब अपनों से बतियाते,
अपनी भाषा-बोली में, अपने सुख-दुख को कह जाते,
खिलता टेसू बन अंगारा, अच्छा लगता है।
जीवन में छाया उजियारा, अच्छा लगता है।।
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उगता सूरज आसमान में, जीवन का संवाहक है,
रजनी को आलोकित करता, चन्दा काम विनायक है,
झिलमिल तारों का गहवारा, अच्छा लगता है।
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गुनगुन करते भँवरे आते, कलियों-कुसुमों पर मँडराते,
अपनी ही धुन में कुछ गाते, मन में सोई पीर जगाते
गुलशन का खिलता गलियारा, अच्छा लगता है।
जीवन में छाया उजियारा, अच्छा लगता है।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)