गजल – नजर के तीर
इन कजरारी आंखों ने, मुझपे ऐसा वार किया
बच ना सका मैं उस कातिल से, जिसपे मैने इतवार किया
प्यार की ज्योति जलाई मैंने, खुन से सिंचा यह पौधा,
जब जब पङी जरुरत उसको, सतंभन सौ बार किया
रुह में मैरी सिमट गयी वो, उन यादों की वो घङियां
लिया पैरों की बन बैठी, जीना मेरा दुश्वार किया
निंदियाँ ना आती, जिया ना लागे, ऐ कातिल तेरे वो वादे,
मदन अकेला कहाँ गयी वो, जिससे तुने प्यार किया
— मदन सुमित्रा सिंघल