गीतिका/ग़ज़ल

बिजली कहाँ गिरोगी

ऐ बिजली तुम कहाँ पे गिरोगी, बतादो हमें हम यहाँ रहते हैं
घनघोर अँधेरा घटाटोप छायी, श्याम वर्ण सी अंधियारी रातें
देती हिलोरें शर्द ऋतु सी, बताओ हमें हम क्यों सहते हैं
खो जाती हो तुम किस दुनिया में, नजर ढुंढती है कहाँ खोई तुम
होती तसल्ली दिदार तेरे, जब जी भर भर देख लेते हैं
तङफाओ ना आओ आगोश में, अरमां हमारे पुरे करो तुम,
मदन सिंघल ऐ चमक चांदनी अब, आने को हम खुद कहते हैं।

— मदन सुमित्रा सिंघल

मदन सुमित्रा सिंघल

पत्रकार साहित्यकार शिलचर असम मो. 9435073653 Madansinghal1959@gmail.Com