चुलबुली नमकीन सी तक़रार अब है ही कहाँ
चुलबुली नमकीन सी तक़रार अब है ही कहाँ
दिल जला है आदमी दिलदार अब है ही कहाँ
दर्द लेकर सौंपता था मीत को मुस्कान जो
आधुनिक इस प्यार में वो प्यार अब है ही कहाँ
है बिना बंधन बिना शादी मुहब्बत का चलन
सात फ़ेरों की कहो दरकार अब है ही कहाँ
धर्म कुर्सी और कद का खेल है जम्हूरियत
वास्तविक सरकार सी सरकार अब है ही कहाँ
ठूठ थी तलवार की भी धार जिसके सामने
लेखनी में व्यंग की वो धार अब है ही कहाँ
सिर्फ़ सत्ता पक्ष के विज्ञापनों का पत्र है
ग़म रियाया का लिखे अख़बार अब है ही कहाँ
झूठ के सौदागरों का बढ़ गया औरा बहुत
सत्य सुनने को कोई तैयार अब है ही कहाँ
सतीश बंसल
१९.०१.२०२३