लघुकथा

लघुकथा – जुगाड़

“आपके परिवार में पाँच वोटर हैं। ये रहे पंद्रह सौ रुपये।  मुखिया जी को ही वोट देना है। दूसरी बार भी चुनाव जीत गई तो विकास की गंगा बहेगी इस पंचायत में।” एक नेतानुमा युवक ने पाँच सौ रुपए के तीन नोट दिखाते हुए कहा।
“पिछली बार भी तो इन्हीं को वोट दिया था। मुखिया जी खुद बोली थी जीतने पर मुझे भी पक्का मकान मिलेगा। कहाँ मिला? मेरी झोपडी आज भी अपनी हालत पर रो रही है। अंदर घुसकर देखो, झोपडी के अंदर से आसमान दिखाई पड़ेगा।” बूढ़े ने जवाब दिया जो परिवार का हेड था।
 “अरे, पिछले पाँच साल में दर्जनों मकान बने, मुखिया जी की मेहरबानी से।  तुम्हारा भी बन जायेगा इस बार।” युवक ने कहा।
“हाँ बन जायेगा! सैंक्शन होने के पहले कमीशन में पंद्रह हजार रूपये का जुगाड़ कर पाऊँगा तब न।” बूढ़ा मन ही मन दर्द को पी रहा था।
 “क्या हुआ? रूपये ले लो। जीतेगी तो अपनी मुखिया ही।” बूढ़े को असमंजस की स्थिति में देख युवक ने कहा।
— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]