गीत/नवगीत

गीत

इतनी सुंदर भोर, का आनंद ले लो
पक्षियों की गूंज से, स्वप्न बुन लो
सूर्य की लालिमा, को तो निहारो
हो गयी सुबह,कुछ सोचो विचारो।

स्वप्न की दुनिया में, कब तक
ऐसे तू , विचरण करे गा
हकीकत से दूर, कब तक
ख्वाबों की, माला बुने गा

हो गया, जग में उजाला
जागो तुम , नया पथ सजा लो
हो गई सुबह, कुछ सोचो विचारो

नींद में सोते रहे,तो कुछ न मिलेगा
पास आया मौका, भी जाता रहेगा
वक्त की आवाज़ को, पहचान लो
त्याग कर निंद्रा,विषय का ज्ञान लो

चल पड़ो, अब तुम न ठहरो
आशाओं का , दीप जला लो
हो गयी सुबह, कुछ सोचो विचारो

खाना, पीना और सो जाना
इतना भर ही, लक्ष्य न तेरा
बाबा कितना थक, गये देखो
कुछ उनका भी, हाथ बटा लो
खेत -खलिहान,सब सूख रहे हैं
थोड़ी उनकी भी, सुधि ले लो

बड़े हुए अब, बचपन छोड़ो
जीविका के साधन जुटा लो
हो गयी सुबह, कुछ सोचो विचारो

मुश्किल से मिला है,यह मानुष तन
भले लोगों की, संगत कर लो
समय का एक-एक पल है कीमती
त्यागो निंदिया, मूल्य समझ लो
थोड़े समय को, मिला है जीवन
व्यर्थ में सो कर, करो न जाया

खुद को जानो,समझो,पहचानो
परमार्थ कार्य में, इसे लगा लो
हो गयी सुबह, कुछ सोचो विचारो

सूर्य की लालिमा, को तो निहारो
हो गयी सुबह, कुछ सोचो विचारो

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई