कवि यमराज
आप इसे मजाक समझेंगे
पर ये सच जितना ही सच है
आज मैंने यमराज को देखा
बेबस, लाचार, उहापोह का शिकार
मेरे घर की मुंडेर पर बैठा
बड़ी कशमकश से मुझे घूर रहा था,
शायद कुछ सोच रहा है
या निर्णय नहीं कर पा रहा था
कि उसे मेरे पास आना चाहिए भी या नहीं
या बिन बुलाए मेहमान की तरह आने का क्षोभ
उसे शर्मसार कर रहा था।
पर मैं भी अपनी आदत से लाचार था
ससम्मान उसे चाय नाश्ते का आमंत्रण दे रहा था।
अब वो खुद से शर्मिंदा हो रहा था
वेवक्त घुसपैठ की कोशिश के लिए
खुद को ही कोश रहा था।
फिर सिर झुकाए वापस जाने लगा।
मैंने कहा-अरे यार!इस तरह आना
फिर चुपचाप जाना अच्छा नहीं लगता
जो सोचकर आये थे
उसे व्यक्त करो, संकोच न करो
तुम्हें निराश नहीं होना पड़ेगा।
और कुछ न सही
समय का कुछ तो उपयोग कर लो
तो मेरी दो चार कविता ही सुन लो
यमलोक जाकर
अपने यार दोस्तों को सुना देना
तुम्हारा भाव बढ़ जायेगा
तुम्हारे अकेलेपन का सहारा हो जायेगा
तुम्हारा नाम के पहले मुफ्त में
कवि लग जायेगा।
साहित्याकाश में तुम्हारा भी नाम
मेरी ही तरह अमर हो जायेगा।