ग़ज़ल
मशक्कत से रोज़ी कमाना सिखायें।
सही राह बच्चों को हरदम बतायें।
चलो आज फिर से नया घर बनायें।
नये जोश से अपना आंगन सजायें।
तनिक मत किसीको कहींभी दबायें।
किसी को नहीं बे सबब यूँ सतायें।
शराफ़त के परचम को ऊँचा उठायें।
ग़रीबों यतीमों पे शफ़क़त लुटायें।
नये फूल गमलों में आओ खिलायें।
नये घर को गुलशन केजैसा सजायें।
— हमीद कानपुरी
शफ़क़त = करुणा