कविता

सर्द फिजाएं

घना कुहरा उतर आया है जमीं पर
बांह पसारे है धरा से आलिंगनरत
जद्दोहद है सूर्य और बादलों में
जमीं पर आने की
क्षितिज पर है वितान कुहरे का
हवाएं हो गई सर्द
फिजाओं में बहार छाई
बादलों ने डाला डेरा
बारिश भी साथ आई
कुबूल है स्पर्श हवाओं का
ठिठुर गई है प्रकृति
परिंदे तो क्या दुबक गए है इंसान भी
कांप रहा है बदन
रोमांचित है मन
खेतों की पगडंडियों पर डग भरते
हृदय प्रसन्नचित्त गहरे
खिल उठे कृषकों के चेहरे।
— कैलास बिश्नोई फूलण

कैलास बिश्नोई फूलण

ग्राम- फूलण, पोस्ट- देवड़ा, तहसील- समदड़ी, जिला- बाड़मेर, राजस्थान