अट्टाहस
सुबह हुई अब शाम हुई
प्रभु तुँ है क्यूॅ अब तक अनजान
गद्दारी की भाषा से चुभ रही है
घायल मन हुआ अपना हिन्दुस्तान
दुश्मन की भाषा का है यहाँ शोर
छुप रहा है राष्ट्रभक्ति का सिरमोर
टी वी पर छिड़ा है जहाँ विवाद
किस किस से करें अब फरियाद
भारत की छवि धूमिल करने का
नित्य हो रहा है यहॉ पर प्रयास
हिन्द की धरती तहस नहस करने
खेल रहा है अनेको यहॉ ताश
जिनको ना है मातृभूमि से प्रेम
वो कर रहे हैं षड़यंत्र प्रतिदिन
नये नये टूल किट बन रहे है
विदेशों में बैठा है विपक्षी जीन
होश में आ जाओं रे देश वासी
पहचानों समय की तुम काम
विदेशों में बैठा है जिनका आका
इन से ना बनना तुम अनजान
— उदय किशोर साह