ग़ज़ल
धुआं उठता है जब जब कहीं पर आग लगती है
समन्दर में हो घर लेकिन वहां क्या प्यास बुझती है।
हजारों प्यार की बातें भूल जाता है हर इंसान
अगर दिल को लग जाए वही एक बात चुभती है।
बंधी रहती है सीमा में नदी ,मौज मे अपनी बहती है
अगर सागर से मिलना हो न चट्टानों से रुकती है ।
सच और झूठ का फैसला होना मुकर्रर है
बात सच्ची भला झूठ के आगे क्या झुकती है।
बना लो महल चौबारे यहीं रह जाएंगे प्यारे
बुलावा आ गया तो मौत फिर कुछ न सुनती है।
जानिब,लहजा नर्म रखो हर किसी से बंदगी रखो
यहीं नेमत ही दुनिया में तुम्हारे बाद रहती है ।
— पावनी जानिब