गीत/नवगीत

गीत – आज़ादी के मतवाले

भारत माँ की आज़ादी को,बहुत यहाँ क़ुर्बान हुए।
गोरों से लड़कर के सारे,देशभक्त संतान हुए।।
हमने रच डाली नव गाथा, लेकर खडग हाथ अपने
 नहीं हटाये बढ़े हुये पग, पूर्ण किए सारे सपने
माटी को निज माथ लगाकर,सारे मंगलगान हुए ।
गोरों से लड़कर के सारे,देशभक्त संतान हुए।।
शत्रु नहीं बच पाया हमसे, पूतों ने हुंकार भरी
भगतसिंह जैसे मतवाले, विजयघोष-जयकार भरी
आज़ादी ने माँगी क़ीमत,वीर सभी बलिदान हुए।
गोरों से लड़कर के सारे,देशभक्त संतान हुए।।
इंकलाब की लाज निभाने, तीन रंग का मान बने
जन गण मन का नग़मा गाया,  तीन रंग की शान बने
भारत छोड़ो के नारे के,मतवाले सहगान हुए ।
गोरों से लड़कर के सारे,देशभक्त संतान हुए।।
बिस्मिल, आज़ादों के कारण,   हमने आज़ादी पाई
 नेहरू-गांधी के नारों ने,   तन पर तो खादी पाई
ब्रिटिश हुक़ूमत काँप उठी तब,पूर्ण सभी अरमान हुए।
गोरों से लड़कर के सारे,देशभक्त संतान हुए।।
आज़ादी के मतवालों ने, इतिहासों को रच डाला
त्याग दिया निज का सुख सारा, विश्वासों को रच डाला
पूत बने सब गौरव-गरिमा,सारे ही यशगान हुए।
गोरों से लड़कर के सारे,देशभक्त संतान हुए।।
— प्रो. शरदनारायण खरे  

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]