आरुणि की गुरुभक्ति
अपने गुरु महर्षि धौम्य की आज्ञा पाकर शाम को छतरी और टॉर्च लेकर आरुणि अपने सर्वसुविधायुक्त गुरुकुल आश्रम के ठीक पीछे स्थित खेतों की ओर निकल गया। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि खेत की मेड़ जगह-जगह से कटी हुई हैं। पानी द्रुत गति से खेतों से निकल कर आगे बहता जा रहा है। पानी के साथ हाल ही में रोपे गए पौधे भी बह रहे हैं। तेज गति से बारिश भी हो रही है और थमने के कोई आसार भी नहीं लग रहे। रात गहरी होती जा रही है। आरुणि धर्मसंकट में पड़ गया। वह पिछली बार की तरह मेड़ पर रातभर लेट भी जाए, तो भी पानी के तीव्र बहाव को रोकना संभव नहीं। बीमार पड़ेगा, डॉक्टर्स के इंजेक्शन, बदबूदार हॉस्पिटल और दवा-दारू के चक्कर सो अलग। ना-ना, उसे कुछ दूसरा ही रास्ता निकालना होगा।
किंकर्तव्यविमूढ़ किशोरवय विद्यार्थी आरुणि ने अपनी हॉफपेंट की गुप्त जेब से बीड़ी का पैकेट निकाला। बड़ी मुश्किल से माचिस की छह तिल्ली जलाने के बाद किसी तरह से बीड़ी सुलगी। तीन सुट्टा मारने के बाद आरुणि के दिमाग की बत्ती जल उठी।
वह तेजी से फावड़ा चलाते हुए गुरुकुल के डायरेक्टर महर्षि धौम्य के खेत के पास स्थित तालाब की मेड़ को काटने लगा। अब बारिश की पानी के साथ-साथ तालाब का पानी भी पूरी गति से आश्रम की खेतों में घुसने लगा। आरुणि ने आसपास के कई खेतों की मेड़ों को भी काट दिया। अब पानी का बहाव इतना तेज था कि महर्षि धौम्य के ही नहीं, उनके खेत के आसपास के खेतों की फसलें भी बुरी तरह से बहनें लगीं।
उधर रात का तीसरा पहर ढलान पर था और आरुणि की कोई खबर नहीं थी। महर्षि धौम्य के चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही थीं। तनाव और ठंड को दूर करने के लिए वे अब तक तीन बार चिलम खाली चुके थे। इधर स्टाक खतम होने को था और उधर उनके प्रिय शिष्य आरुणि का कोई अता-पता नहीं चल पा रहा था। जब उनसे रहा नहीं गया, तो वे स्वयं अपनी डिजाइनर छतरी और लालटेन लेकर निकल पड़े खेतों की ओर। बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। सारे खेत-खलिहान जलमग्न हो गए थे। किसी तरह गिरते-पड़ते, संभलते हुए महर्षि धौम्य अपने खेतों तक पहुँच ही गए। वहाँ की दुर्दशा देख उनकी आँखों में आँसू आ गए।
महर्षि धौम्य को अपने खेतों के फसलों की बर्बादी से ज्यादा आरुणि की गुमशुदगी की चिंता खाए जा रही थी। उन्होंने आदतन कटे हुए मेड़ को टटोलकर देखा, कि कहीं उनका प्रिय शिष्य आरुणि फिर से पानी की बहाव को रोकने के लिए लेट तो नहीं गया है, पर इस बार उन्हें निराशा हाथ लगी। टेंशन के साथ-साथ उनकी बीपी भी बढ़ने लगी। ‘यदि कुछ ऊँच-नीच हो गई, तो क्या मुँह दिखाऊँगा आरुणि के माता-पिता को। पिछली बार खेत की मेड़ पर लेटने की वजह से उसे सर्दी-जुकाम होने पर उसके माँ-बाप ने कितनी खरी-खोटी सुनाई थी। उसके दादाजी ने तो एफ.आई.आर. तक कराने की धमकी दे डाली थी।”
चिंतित महर्षि धौम्य अपने आश्रम की बजाय सरपंच जी की हवेली की ओर चल पड़े। हवेली के चौकीदार ने बताया, “गुरुदेव, देर रात आपके प्रिय शिष्य आरुणि जी हवेली में आए थे, तब यहाँ पार्टी चल रही थी। सरपंच जी के आग्रह पर रात में आरुणि जी भी पार्टी में शामिल हो गए थे। बहुत रात हो जाने के कारण वे यहीं सो गए हैं। आप बिल्कुल भी चिंता न करें। उधर देखिए, आरुणि जी सोए हुए हैं।”
महर्षि धौम्य ने देखा, उनका प्रिय शिष्य आरुणि अस्त-व्यस्त हालत में हवेली की आँगन में एक तखत पर सोया पड़ा है। उनकी अनुभवी आँखों को समझते देर नहीं लगी कि पार्टी जबरदस्त, रंगीन और देर रात तक चली होगी।
खैर, गुरुदेव उखड़े मन से अपने आश्रम की ओर लौट चले। वे चिलम तैयार कर ही रहे थे कि सामने उनका प्रिय शिष्य आरुणि प्रसन्नचित्त मुद्रा में आकर अपने गुरुदेव को ‘गुड मॉर्निंग’ विश करने के बाद कहा, “गुरुदेव, माफी चाहूँगा देर से लौटने के लिए। दरअसल सारी चीजें मैनेज करने में मुझे कल बहुत रात हो गई थी। पर सब कुछ सेट हो गया है। सरपंच जी ने बहुत आग्रह किया, तो मैं रात को वहीं रुक गया।”
गुरदेव चकित। बोले, “मैनेज करने ? क्या वत्स ? मैंने तो तुम्हें सिर्फ खेत की मेड़ें ठीक करने के लिए भेजा था, वह तो तुमने किया नहीं और फिर तुम सरपंच जी की हवेली में कैसे पहुँच गए ?”
आरुणि बोला, “वही तो गुरुदेव, आपको तो पता ही है कि कल की बारिश कितनी तेज थी। खेत की मेड़ें ठीक करना तो संभव ही नहीं था। तालाब का पानी भी ओवरफ्लो होकर हमारे खेतों में आ रहा था। हमारी फसलें तो लगभग चौपट ही हो गई थीं। फसल बीमा का लाभ लेने के लिए यह जरूरी था कि आसपास के लोगों की भी फसलें भी चौपट हो। इसलिए मैं वही करने लग गया।”
महर्षि धौम्य ने आश्चर्य से पूछा, “क्या ? क्या किया तुमने ?”
आरुणि बोला, “गुरुदेव, मैंने अपने खेत ही नहीं, तालाब और आसपास के खेतों की भी मेंड़ें काट दीं ताकि प्राकृतिक आपदा के कारण फसल बीमा का लाभ सबके साथ हमें भी मिल सके।”
महर्षि धौम्य ने पूछा, “फसल बीमा ? ये क्या बला है वत्स ? किसने बताया तुम्हें इसके बारे में ?
आरुणि बोला, “गुरुदेव, आप स्मार्टफोन यूज तो करते नहीं। मैंने कई बार आपसे निवेदन किया है कि अपना ये डब्बा वाला मोबाइल फोन फेंक दीजिए और बढ़िया-सा स्मार्टफोन थामिए। पर आप हर बार मेरी बात को इगनोर कर देते हैं।”
धौम्य ने पूछा, “इससे हासिल होगा क्या वत्स ?”
आरुणि ने बताया, “उससे होगा ये गुरुवर कि आप सोसल मीडिया के माध्यम से लाखों-करोड़ों लोगों से जुड़ सकेंगे। वहाँ ट्वीटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सएप, मैसेंजर, वी चैट, टिकटाक, यू-टयूब आदि के माध्यम से शुक्राचार्य, वृहस्पत, वशिष्ठ, विश्वामित्र, सांदीपनि, द्रोणाचार्य, चरक, भरतमुनि जैसे बड़े-बड़े महागुरुओं से मिल सकेंगे। वहाँ हर कोई चौबीसों घंटे सातों दिन निश्वार्थ भाव से ज्ञान बाँटने मे लगा हुआ है। पढ़े-लिखे ही नहीं अनपढ़ लोग भी ग्रूप के माध्यम से अपना अलग-अलग मठ बनाकर मठाधीश बने हुए हैं। गुरुवर, आजकल ज्ञान की जो गंगा सोसल मीडिया में बहती है, उसके सामने आपका ब्रह्मज्ञान कुछ भी नहीं।”
महर्षि धौम्य ने उसे टरकाते हुए कहा, “अच्छा छोड़ो ये सब अनर्गल बातें। तुम मुझे ये बताओ कि सरपंच जी की हवेली में क्या करने के लिए गए थे ?”
आरुणि बोला, “वही तो बता रहा हूँ आपको गुरुदेव। फसल बीमा के क्लेम के संबंध में चर्चा करने के लिए मैं पहले पंचायत सचिव के पास गया था। वे मुझे सरपंच जी की हवेली में ले गए। सचिव और मैंने जब सरपंच जी को इस प्राकृतिक आपदा और फसल बीमा के क्लेम के बारे में बताया, तो वे खुशी से झूम उठे। उन्होंने पंचायत सचिव को सभी प्रभावित किसानों की पुख्ता तरीके से केस बनाकर प्रस्तुत करने के लिए कहा। इन सब क्लेम केसेस में उनका पंद्रह प्रतिशत का कमीशन रहेगा। मैंने आश्रम की चौबीस एकड़ खेत का केस बनाने के लिए फॉर्म भरवा दिया है।”
महर्षि धौम्य की आँखें फैली की फैली रह गईं, “चौबीस एकड़ ? पर वत्स, हमने तो पन्द्रह एकड़ में ही फसल बोया था। फिर ये चौबीस एकड़ का क्लेश ?”
आरुणि बोला, “वही तो मैनेज किया है गुरुवर। वरना सरपंच जी और ऊपर के अधिकारियों को उनका कमीशन कैसे दे पाएँगे हम ?”
सुनकर डायरेक्टर महर्षि धौम्य गदगद हो गए। “शाबाश बेटा। तुमने मेरा दिल जीत लिया है। इसलिए मैं अगले साल की तुम्हारी पूरी ट्यूशन और हॉस्टल की फीस माफ करता हूँ।”
खुशी के मारे महर्षि ने अपने प्रिय शिष्य आरुणि को गले से लगा लिया।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़