कल्याण
चाहा भारत की संस्कृति ने सदा हो विश्व का कल्याण
कालान्तर में धीरे धीर स्वार्थ -परायण हो गए लोग
भेद भाव और उँच-नीच के लग गए सबके मन में रोग
भौगोलिक ऐतिहासिक कारण परिवर्तन आया सब में
करने लग गए सभी विश्व में भेद वर्ण जाति उपयोग
मूल उद्गम संस्कृति भारती है हम सब् को इसका भान
चाहा भारतकी संस्कृति ने सदा हो विश्व का कल्याण
बड़ी बात होगी यदि हम अपनी शक्ति को पहचानें
धर्म संस्कृति योग ध्यान से ज्ञान विज्ञान को हम जानें
विश्व के लोगों को हम सब दें मात्र प्रेम का ही सन्देश
बांधें विश्व को एक सूत्र में विश्व की एकता को जानें
पनपे नहीं उदंडता किसी में और कभी न हो अभिमान
चाहा भारत की संस्कृति ने सदा हो विश्व का कल्याण
— डा केवलकृष्ण पाठक