नमक हलाल
रामबाबू एक प्राईवेट कंपनी में एकाऊंटेंट थे। वे उन लोगों में से एक थे जिनका यह मानना होता है कि कर्म ही पूजा है और कार्यालय मंदिर। कंपनी के प्रति उनकी निष्ठा, समर्पण व ईमानदारी का न केवल कंपनी के मालिक ठाकुर रामदयाल जी और सभी डायरेक्टर्स बल्कि पूरा स्टाफ और क्लाइंट भी कायल थे। एकाऊंटेंट रामबाबू का हर काम एकदम परफेक्ट और समय पर होता था। इससे सभी उनसे खुश रहते थे।
रामबाबू कंपनी ही नहीं, घर में भी एक अच्छा बेटा, आदर्श पति और पिता थे। उनके बुजुर्ग मम्मी-पापा उन्हीं के साथ कंपनी से मिले दो बी.एच.के. मकान में ही रहते थे। हालांकि वे अक्सर लोगों से यही कहा करते थे कि “मैं अपने मम्मी-पापा के साथ रहता हूँ, न कि मम्मी-पापा मेरे साथ। आज मैं जो कुछ भी हूँ, अपने मम्मी-पापा की अथक परिश्रम और त्याग की बदौलत ही हूँ।
रामबाबू की पत्नी सावित्री भी बहुत ही भली और सुसंस्कृत महिला थी। अपने घर की पूरी जिम्मेदारी वही संभालती थी। रामबाबू के मम्मी-पापा अपने भरे-पूरे परिवार के साथ आनंदपूर्वक जीवन बिता रहे थे। इससे रामबाबू घर की चिंता से दूर रहते हुए कंपनी के कामकाज बहुत ही आसानी से समय पर कर सकते थे। पहली बार उनसे मिलने वाले लोग असमंजस में पड़ जाते थे कि सावित्री उस घर की बेटी है या बहू। दोनों बच्चे न केवल पढ़ाई-लिखाई बल्कि अन्य गतिविधियों में भी अव्वल रहते थे। संस्कारी ऐसे कि कोई भी माँ-बाप उन पर गर्व करे। इसका पूरा श्रेय रामबाबू और सावित्री उनके दादा-दादी को ही देते। बच्चों के दादा-दादी की तो जान बसती थी दोनों बच्चों में। उनके सुबह सोकर उठने से लेकर रात को सोने तक। सावित्री और रामबाबू को तो पता ही नहीं चला कि दोनों बच्चे कैसे गोद से उतरकर किशोरावस्था में पहुँच गए।
समय का पहिया घूमता रहा। एक दिन दोपहर के समय रामबाबू कंपनी का पैसा जमा करने बैंक जा रहे थे। कुछ लुटेरों ने उनसे छीनाझपटी की। रामबाबू के विरोध करने पर लुटेरों ने उन्हें गोली मार दी और सारा नगदी लेकर फरार हो गए। रामबाबू ने दुर्घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया। दम तोड़ने से पहले उन्होंने लुटेरों में से एक की पहचान कंपनी के पूर्व सुरक्षाकर्मी और उनके द्वारा उपयोग में लाए गए कार का नंबर पुलिस को बता दिया था। इसीलिए पुलिस ने तत्काल नाकेबंदी कर सभी लुटेरों को लूट के सामान सहित पकड़ लिया।
कंपनी के मालिक ठाकुर रामदयाल जी को कंपनी के पैसे लूटे जाने का उतना दु:ख नहीं हुआ जितना कि रामबाबू की मर्डर से हुआ। उनका एक ऐसा वफादार कर्मचारी उनसे हमेशा के लिए बिछड़ गया था, जैसा कि आजकल विरले ही मिलते हैं। वे अपने एकाऊंटेंट रामबाबू पर अपनी संतान से भी ज्यादा भरोसा करते थे।
कानूनी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद रामबाबू की डेड बॉडी उनके परिजनों को सौंपी गई। कंपनी के मालिक ठाकुर रामदयाल स्वयं शोक-संवेदना प्रकट करने उनके घर आए। वहीं उन्होंने घोषणा की, कि “रामबाबू हमारी कंपनी के बहुत ही मेहनती और विश्वसनीय कर्मचारी थे। उनके यूँ अचानक चले जाने से उनके परिवार के बाद यदि किसी को सबसे ज्यादा क्षति हुई है, तो वह है हमारी कंपनी को। उसकी भरपाई कर पाना हम सबके लिए असंभव है। ईश्वर की इच्छा के सामने हम नत मस्तक हैं। हमने निश्चय किया है कि एकाऊंटेंट रामबाबू को जितनी पगार कंपनी से मिलती थी, उतनी ही पगार और हर साल बढ़ने वाली इंक्रीमेंट उनकी पत्नी के खाते में हर माह जमा की जाएगी। रामबाबू को कंपनी के नियमानुसार जो भी अवकाश नगदीकरण, ग्रेच्यूटी और कर्मचारी कल्याण निधि के पैसे मिलने हैं, वे सब उनकी तेरहवीं के पहले मिल जाने चाहिए। और हाँ, रामबाबू को मिला हुआ कंपनी का क्वार्टर भी उनके परिजनों के पास ही तब तक रहेगा, जब तक वे वहाँ रहना चाहेंगे।”
ठाकुर रामदयाल की घोषणा का सबने तालियाँ बजाकर स्वागत किया। सावित्री ने कंपनी के मालिक ठाकुर रामदयाल सिंह से हाथ जोड़कर उनका आभार प्रकट करते हुए कहा, “साहब, आपका ये अहसान हम जीवनभर नहीं भूलेंगे। ये तो आपका बड़प्पन है कि एक मामूली से एकाऊंटेंट को इतनी तवज्जो दे रहे हैं। साहब, हम मेहनतकश लोग हैं। हमें मुफ्त की रोटियाँ नहीं चाहिए। यदि आप ठीक समझें, तो मुझे अपनी कंपनी में कोई छोटी-मोटी नौकरी दे दीजिए।”
मालिक ने पूछा, “बेटी, तुम्हारा यह सुझाव बहुत अच्छा है। बोलो, तुम क्या काम कर सकती हो। कहाँ तक पढ़ाई की है तुमने ?”
सावित्री बोली, “साहब, ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं हूँ मैं। बस, बारहवीं पास हूँ। यदि मुझे आपकी कंपनी में चपरासी की भी नौकरी मिल जाए, तो मैं खुशी से कर लूँगी।”
मालिक बोले, “ना बेटी ना। तुम्हारे पति रामबाबू ने हमारी कंपनी को ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए जितना किया है, उसकी कीमत तुम्हें हम चपरासी की नौकरी देकर नहीं चुका सकते। मैंने तुम्हें बेटी कहा है, इसलिए मैं कभी नहीं चाहूँगा कि मेरी बेटी चपरासी की नौकरी करे। यदि तुम और तुम्हारे सास-ससुर चाहो, तो हमारे बँगले के पास वाले कंपनी के स्टाफ क्वार्टर में रहकर मेरे पोते-पोतियों की पढ़ाई-लिखाई, होमवर्क, ट्यूशन और स्कूल आने-जाने में ड्राइवर के साथ रहकर सहयोग कर सकती हो। तुम्हारे जैसे विश्वसनीय व्यक्ति के उनके साथ रहने से हम निश्चिंत रह सकते हैं। हमारे घर का पूरा बाहरी मैनेजमेंट तुम संभाल सकती हो। तुम्हारे सास-ससुर के सुसंस्कृत सानिध्य में मेरे पोते-पोती भी कुछ अच्छी चीजें सीख लेंगे। मैंने सुना है तुम्हारे दोनों बच्चों की देखभाल वही करते हैं।”
रामबाबू के पिताजी ने हाथ जोड़कर कहा, “मालिक, आप इंसान के वेश में देवता हैं। आज के युग में आपके जैसे उच्च विचार के लोग बहुत कम मिलते हैं। हमें आपकी बात मंजूर हैं। हमने आपका नमक खाया है। अंतिम साँस तक हम आपके लिए काम करते रहेंगे।”
मालिक ने कहा, “तो ठीक है फिर। अभी आप लोग रामबाबू के तेरहवीं तक सभी क्रियाकर्म यहीं से विधिवत संपन्न कराइए। कंपनी की ओर से ये एक लाख रुपए की अनुग्रह राशि आपको अभी हम दे रहे हैं। मैं आशा करता हूँ कि इससे रामबाबू का विधिवत क्रियाकर्म संपन्न हो जाएगा। तेरहवीं के बाद एक अच्छा-सा शुभ मुहूर्त देखकर आप लोग दूसरे स्टाफ क्वार्टर में शिफ्ट हो जाएँगे। तब तक उसकी साफ-सफाई और रंगाई-पुताई भी हो जाएगी। और हाँ, पी.ए. साहब तत्काल आदेश जारी कराइए कि रामबाबू के दोनों बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा अब कंपनी उठाएगी। सावित्री का ‘केयरटेकर’ के पोस्ट पर स्पेशल अपाइंटमेंट लेटर भी जारी कर दीजिए। बेसिक वही रखिएगा, जो आज की डेट में एकाऊंटेंट रामबाबू का है।”
पी.ए. ने कहा, “जी सर। मैं अभी आदेश करवाता हूँ।”
जब रामबाबू की अर्थी उठी, तो सबकी आँखें नम थीं। उन्हें कंधा देने वालों में ठाकुर रामदयाल भी एक थे। इसे देखकर कुछ लोगों ने अभिभूत होकर नारा लगाया, ‘ठाकुर साहब – जिंदाबाद’, “ठाकुर साहब की – जय’, ‘हमारा मालिक कैसा हो – ठाकुर रामदयाल जैसा हो’।
ठाकुर रामदयाल ने उन्हें रोकते हुए नारा लगाया, ‘हमारे इम्प्लाई कैसे हों’
सबने जोर से जयकारा लगाया, ‘रामबाबू जैसे हों’।
दाह संस्कार के बाद जब ठाकुर रामदयाल अपने घर पहुँचे, तो उनके बेटे ने उनसे पूछा, “क्या बात है पापा, आप एक मामूली-से एकाऊंटेंट की मौत से इतने दुखी हो गए ?”
ठाकुर रामदयाल ने उसे समझाया, “बेटा, रामबाबू हमारी कंपनी के लिए मामूली से एक एकाऊंटेंट ही नहीं थे, बल्कि वे मेरे लिए अपनों से भी बढ़कर थे। हमारी कंपनी को ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनका बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। उनकी दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि हमारी कंपनी महज कुछ लाख रुपए से शुरु होकर आज करोड़ों के टर्नओवर में पहुँच चुकी है। रामबाबू की सलाह पर ही दस साल पहले जब हमने अपनी लाभांश का बीस प्रतिशत राशि अपने कर्मचारियों को बोनस के रूप में देने का निर्णय लिया था, तब अगले साल कंपनी का मुनाफा पचास प्रतिशत बढ़ गया था। उसके बाद कंपनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रामबाबू के जाने के बाद यदि हम उनके परिजनों के लिए कुछ अच्छा कर सकेंगे, तो यह उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। वैसे भी बेटा, आज रामबाबू के परिवार के लिए मैंने जो कुछ भी किया, उसका सकारात्मक परिणाम अब ये होगा कि हमारे अन्य सभी कर्मचारी भी एकाऊंटेंट रामबाबू की तरह ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ बनने की कोशिश करेंगे। बेटा, मैं भी एक पक्का व्यापारी हूँ। कोई भी निर्णय लेने से पहले अपना भला-बुरा पहले ही देख लेता हूँ। एकाऊंटेंट रामबाबू के परिजन भी रामबाबू के जैसे हैं। उन्हें रोजगार देना हमारे लिए घाटे का सौदा बिल्कुल नहीं।”
बेटे ने कहा, “जी पापा। यू आर ग्रेट। आपकी दूरदर्शिता अप्रतिम है। यही कारण है कि आप शुरू से ही मेरे आदर्श रहे हैं। मैं भी आपके नक्शे कदम पर चलने की कोशिश करूँगा।”
अगले दिन शहर के अखबारों में एकाऊंटेंट रामबाबू की हत्या और कंपनी के मालिक ठाकुर रामदयाल की ओर से उनके परिवार के लिए किए गए घोषणा के समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किए गए। कंपनी में भी हर किसी की जुबान पर एकाऊंटेंट रामबाबू और मालिक ठाकुर रामदयाल थे।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़