व्यंग्य – चुगली रस
वर्तमान युग की भागम भाग और संघर्षों से भरी ज़िन्दगी में जहां लोगों के पास अपनों की तो छोड़िए,अपने लिए ही समय नहीं है।फुरसत के चंद लम्हें क्या होते हैं,इसको परिभाषित करना आज शायद ही किसी को आता हो।आज हर कोई दूसरे से आगे बढ़ना चाहता है, कम समय में अधिक पाना चाहता है और जीवन में एक नया मुकाम हासिल करना चाहता है ।तो ज़ाहिर सी बात है इस सब के लिए व्यक्ति को अपने दिन रात एक करके मेहनत भी करनी पड़ती है।
इतनी व्यस्तताओं के बावजूद भी एक काम के लिए अधिकतर लोगों के पास भरपूर समय निकल आता है या यूं कहें कि वे उस पावन कार्य को अंजाम देने के लिए कैसे न कैसे वक्त निकाल ही लेते हैं।
वो पावन पुनीत कार्य कुछ और नहीं अपितु चुगली करना ही है।रस से भरपूर इस काम को लोग बड़े ही चाव से आगे बढ़ बढ़ कर करते हैं।यहां तक कि जिनका इस महान कार्य से दूर दराज तक कुछ लेना देना नहीं होता,वे भी बड़ी शिद्दत और लगन के साथ इस कार्य में दूसरों का पूर्ण सहयोग करते हैं और मदद कर मिलने वाले पुण्य के भागीदार बनने का परम सुख भोगते हैं।
बात घर की हो,बाहर की हो या ऑफिस की..चुगली करने वाले कर्मठ कार्यकर्ता आपको हर जगह बिना ढूंढे ही मिल जाएंगे।आपको उन्हें ढूंढने में जरा भी मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी।गली मोहल्ले में सास बहू की और उसके मायके वालों की, पार्क में बहू सास ननदों की और जेठानी देवरानियों की चुगली करते नहीं थकती।यही नहीं,साथ ही घंटों चुगलियां और बुराइयां करने के बाद उनका ये डायलॉग कि..अपनी तो आदत ही नहीं कभी किसी के बारे में कुछ इधर उधर का बोलने की…चुगली प्रक्रिया का सबसे अहम हिस्सा जान पड़ता है क्योंकि तड़का तो ऐसे डायलॉग ही लगाते हैं न बातों में…अरे नही नहीं, माफ़ कीजियेगा ..चुगलियों में।
ऑफिस में सहकर्मियों की चुगली करना प्रत्येक सत्यनिष्ठ और कर्त्तव्यनिष्ठ कर्मचारी का जन्मसिद्ध अधिकार है,मानों अपॉइंटमेंट लेटर में यह भी लिखा हो कि जॉब मिलने के बाद यदि चुगली कार्यों से उदासीनता दिखाई तो इंक्रीमेंट नहीं मिलेगी या फिर मिलने वाले बोनस में कटौती की जाएगी।कौन सा कर्मचारी कितने बजे ऑफिस आया कितने बजे बाहर गया,किसका किससे चक्कर चल रहा है,कौन बॉस के पीठ पीछे उसे खडूस बोलता है,कौन प्रमोशन पाने के लिए चमचागिरी करता है ..इन सबकी जानकारी देने वाले महानुभाव चुगलखोरी में मास्टर्स की डिग्री लेकर ही ऑफिस ज्वाइन करते हैं।
राजनीति को ही देख लीजिए…नेताओं के चमचे, कडच्छे सब चुगली रस का भरपूर आनंद उठाते हैं।सफलता की सीढ़ी पर शीघ्रता से चढ़ने की लालसा लिए ये चमचे चुगली करने में भी राजनीति करते हैं।आज जिस पार्टी में हैं उनके सामने विपक्ष को ऐसे शब्दों में पेश करेंगे जैसे उनसे बड़ा पार्टी का शुभचिंतक दूसरा कोई नहीं।पार्टी बदलते ही उनकी चुगली का स्टाइल और शिकार दोनों बदल जाते हैं।उनके राजनैतिक जीवन में ऐसे असंख्य मौके आते हैं जब वे चुगलियों के माध्यम से अपने आला नेताओं की आंख का तारा बनना चाहते हैं और कामयाबी भी हासिल कर जाते हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि आज के समय में ऐसा कोई महकमा,कोई संस्थान,कोई क्षेत्र शेष नहीं जो चुगलियों और चुगलखोरों से खुद को बचा हुआ पाता हो।क्या वाकई में चुगली करने में इतना रस मिलता है।
— पिंकी सिंघल