मुक्तक/दोहा

सनातन

आओ हम अपनी ढपली, अलग-अलग बजाते हैं,
हिन्दू से ब्राह्मण बनिये, दलित अलग हो जाते हैं।
ठाकुर जाट गुर्जर कुम्हार, गडरियों को भी बाँटों,
अगडे पिछड़े स्वर्ण बोद्ध जैन, सब अलग हो जाते हैं।
जाने कितने फिरके मुस्लिम, पर मुस्लिम कहलाते हैं,
ईसा में भी अलग-अलग, सब ईसाई ही कहलाते हैं।
सब धर्मों के अनुयायी, कुछ खेती कर्म मे संलिप्त रहे,
हिन्दू को टुकड़ों में बाँटा, जाट ही किसान कहलाते हैं।
एक नयी जाति किसान, कुछ दलित शुद्र में बाँट दिए,
जैन में भी श्वेतांबर पीतांबर, तेरापंथियों में बाँट दिए।
ब्राह्मण भी टुकड़े टुकड़े, बोद्ध सिक्ख भी अलग किये,
सनातन की पहचान मिटाकर, जाति क्षेत्र में बाँट दिये।
जागो हे सनातन के वीरों, खेल रहे सब खेल पुराना है,
पहले हमला भारत पर, अंग्रेजों का इतिहास पुराना है।
अब अंग्रेजों के पिट्ठू कुछ, हैं रंगे सियार यह खेल रहे,
सनातन को विक्षिन्न कर सत्ता, जिनका खेल पुराना है।
अ कीर्ति वर्द्धन