स्थान
शाम के धुंधलके में दरवाजे पर कोई साया नजर आया बाबुलालजी अपना चश्मा पहनते हुए पूछा “कौन है दरवाजे पर?”
मोहित ने अन्दर आते हुए कहा “सर मैं हूं मोहित !”
“कौन मोहित?”
“सर मैं आपका स्टूडेंट् हूं!”
“अच्छा -अच्छा ” बाबूलालजी ने कुछ सोचते हुए कहा।
“मोहित थोड़ा बैठक की लाईट जला देना !”
“जी सर “
लाईट जलाकर मोहित उनके करीबी बैठ गया। बाबूलालजी को ऐसी अवस्था में देख कर उसकी आंखों नम हो गई।
“सर आप अकेले रहते है। आपके बच्चे कहां गए?”
“बच्चों ने अपनी -अपनी दुनिया बसा ली हैं।” बाबूलालजी ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
“आप अपने बच्चों के साथ क्यों नहीं रहते है?”
“बच्चों की दुनिया में अब अपना कोई स्थान नहीं है ! बच्चों को कामयाब बनाने के चक्कर में खुद से दूर कर दिया। बेहतर शिक्षा और बेहतर भविष्य देने के खातिर उन्हें हमेशा अपने दूर होस्टल में रखा। उन्हें बेहतर शिक्षा तो दिलाया मगर नैतिक शिक्षा देने से चूक गया। उनको हमेशा अपना ध्यान रखना सिखाया, उनकी सारी ख्वाहिशें पूरी की । कभी ये नहीं बताया कि उन्हें अपने साथ अपने माता -पिता का भी ध्यान रखना है, उनकी भी ख्वाहिशें पूरी करनी है।” कहते -कहते बाबूलालजी की आंखें भर आईं ।
— विभा कुमारी “नीरजा”