कविता

उड़ान

सुन मेरे मन के परिंदे
आगे ही तू बढ़ता चल।
न सोच तू इन राहों का
बस आगे ही निकलता चल।
न सोच तू राहगीरों का
वो भी खुद पंथ पे मिल जाएंगे।
न सोच तू इन हवाओं का
ये भी एक दिन बह जाएंगी।
न सोच तू इन तूफानों का
ये भी एक दिन थम जाएंगे।
न सोच तू इस अंनत व्योम को
इसको भी एक दिन तुम छू जाओगे।
न डर तू अनजान राहों से
ये भी एक दिन परिचित हो जाएंगे।
सुन मेरे मन के परिंदे
बस तू आगे बढ़ता चल
अपनी उड़ान यूँ ही तू भरता चल।

— राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233