कविता

/ यथार्थ की दुनिया में…/

कई लोग ऐसे हैं
बढ़-बढ़कर दूसरों से बोलते हैं,
लेकिन बहुत कम लोग
अपने आप से बोलते हैं

अपने में दूसरों को देखना
दूसरों में अपने को देखना
सबसे बड़ी साधना है
मनुष्य का, यथार्थ में,

दुनिया में हम देखते हैं
जरूरत पड़ने पर
सब कुछ बदलते रहते हैं
परिवर्तन एक सत्य है

बहुत कुछ सीखा है मनुष्य
अपने अनुभव के बल पर
देश, काल, परिस्थितियों के अनुरूप
चलने में वह पटु बन गया है

लेकिन, बंदी हो गया है मनुष्य
ऊँच-नीच, अमीर-गरीब,
वर्ण-वर्ग, जाति-धर्म के भाव जाल में
अपने आपका सुध वह खो बैठा है

जिंदगी एक दूसरे के
सहयोग का नाम है
बुद्धि बल हो या शारीरिक बल
समूह की देन है वह

समाज के लिए बोलना
विधि है मनुष्य का
समानता का भाव फैलाना
कर्तव्य है उसका

पढ़ाई सबकी हो रही है
फिर भी,वैश्विक चिंतन का अभाव है
मनुष्य होने की भावना
अभी भी बाकी है इस जग में

रंग भेद, जाति भेद, लिंग भेद
धार्मिक पाखंड, कुरीतियों के सामने
वह असफल है, असमर्थ है
अपने आपको, दूसरों को समझने में,

लाखों – करोड़ों संपत्ति में नहीं
सबके साथ चलने में है जिंदगी
सुख – भोग की लालसा धोखा है
असीम इच्छाएँ घातक हैं इंसान का

देखो, आ गया है वह समय
साधक बनने का,बोधि मार्ग पर
एक दूसरे का महत्व जानते हुए
यथार्थ के धरातल पर चलने का ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।