/ यथार्थ की दुनिया में…/
कई लोग ऐसे हैं
बढ़-बढ़कर दूसरों से बोलते हैं,
लेकिन बहुत कम लोग
अपने आप से बोलते हैं
अपने में दूसरों को देखना
दूसरों में अपने को देखना
सबसे बड़ी साधना है
मनुष्य का, यथार्थ में,
दुनिया में हम देखते हैं
जरूरत पड़ने पर
सब कुछ बदलते रहते हैं
परिवर्तन एक सत्य है
बहुत कुछ सीखा है मनुष्य
अपने अनुभव के बल पर
देश, काल, परिस्थितियों के अनुरूप
चलने में वह पटु बन गया है
लेकिन, बंदी हो गया है मनुष्य
ऊँच-नीच, अमीर-गरीब,
वर्ण-वर्ग, जाति-धर्म के भाव जाल में
अपने आपका सुध वह खो बैठा है
जिंदगी एक दूसरे के
सहयोग का नाम है
बुद्धि बल हो या शारीरिक बल
समूह की देन है वह
समाज के लिए बोलना
विधि है मनुष्य का
समानता का भाव फैलाना
कर्तव्य है उसका
पढ़ाई सबकी हो रही है
फिर भी,वैश्विक चिंतन का अभाव है
मनुष्य होने की भावना
अभी भी बाकी है इस जग में
रंग भेद, जाति भेद, लिंग भेद
धार्मिक पाखंड, कुरीतियों के सामने
वह असफल है, असमर्थ है
अपने आपको, दूसरों को समझने में,
लाखों – करोड़ों संपत्ति में नहीं
सबके साथ चलने में है जिंदगी
सुख – भोग की लालसा धोखा है
असीम इच्छाएँ घातक हैं इंसान का
देखो, आ गया है वह समय
साधक बनने का,बोधि मार्ग पर
एक दूसरे का महत्व जानते हुए
यथार्थ के धरातल पर चलने का ।