कविता

हर पल ऐसे ही जीना है

चार दिनों का मेला जीवन, बड़ा झमेला है,
आना-जाना, भीड़-भड़क्का, मन तो अकेला है,
सुख का स्वागत करना है, दुःख को भी पीना है,
हर पल ऐसे ही जीना है, हर पल ऐसे ही जीना है.
विनम्रता का बाना पहन कर, अहंकार को छोड़ो,
मीठे-सच्चे बोल बोलकर, न्याय से नाता जोड़ो,
मान-सम्मान और प्रेम प्यार के, पाठ सीखना है,
हर पल ऐसे ही जीना है, हर पल ऐसे ही जीना है.
नहीं अपेक्षा नहीं उपेक्षा, जीवन का है सार,
कर्मठ होकर कर्म करें हम, जीवन हो गुलजार,
सहनशीलता अपनाना, जीवन का नगीना है,
हर पल ऐसे ही जीना है, हर पल ऐसे ही जीना है.
भूतकाल तो भूत हो गया, भविष्य है बस सपना,
जो कुछ है सो अब का पल है, यही है केवल अपना,
वर्तमान में जीकर मधुरिम, मधुरस पीना है,
हर पल ऐसे ही जीना है, हर पल ऐसे ही जीना है.
क्या लाए क्या लेकर जाना, सोच-समझ तू प्यारे,
अंतर्मन के द्वंद में पड़कर, व्यर्थ समय न गंवा रे,
आस का दीप जला वरना, मझधार सफीना है,
हर पल ऐसे ही जीना है, हर पल ऐसे ही जीना है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244