आदिवासी समाज और साहित्य चिंतन : साहित्य की विविध विधाओं की अभिव्यक्ति
डॉ जनक सिंह मीना और डॉ कुलदीप सिंह मीना के संपादन में सद्यःप्रकाशित पुस्तक ‘आदिवासी समाज और साहित्य चिंतन’ में भारत के आदिवासी समाज और उनकी संस्कृति का बहुआयामी विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है I इस पुस्तक में विविध दृष्टिकोण से आदिवासी समाज के लोकजीवन का आकलन किया गया है I पुस्तक में विभिन्न विषयों पर अधिकारी विद्वानों के कुल उन्नीस आलेख संकलित हैं I यह पुस्तक भारत के आदिवासियों को देखने-समझने के लिए हमारी दृष्टि का विस्तार करती है I डॉ वेलाराम घोगरा के ‘संविधान और आदिवासी : सुरक्षात्मक संविधान में असुरक्षित है आदिवासी’ शीर्षक आलेख में रेखांकित किया गया है कि आदिवासी समाज के संरक्षण और विकास के लिए भारतीय संविधान में पर्याप्त प्रावधान विद्यमान हैं और स्वतंत्र भारत में आदिवासी समाज का विकास भी हुआ है I आदिवासी समाज के उन्नयन के लिए अनेक समितियाँ बनायी गईं, विभिन्न सरकारों ने उन समितियों की अनुशंसाओं पर अमल भी किया, परंतु आदिवासी विकास के नाम पर जितना धन खर्च किया गया उसके अनुपात में उनका विकास नहीं हुआ I ‘महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा’ शीर्षक आलेख में डॉ बाबूलाल चांवरिया ने अमर शहीद बिरसा मुंडा के व्यक्तित्व और देश के प्रति उनके समर्पण का पुण्य स्मरण किया है I देश के स्वतंत्रता संग्राम रूपी महायज्ञ में बिरसा मुंडा ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर समाज के लिए एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया था I डॉ डी.सी.मीना के आलेख ‘बिरसा मुंडा : स्वतंत्रता आंदोलन के नायक तथा आदिवासी जागरण के प्रतीक’ में रेखांकित किया गया है कि बिरसा मुंडा ने देश की आज़ादी के लिए अपना बलिदान कर दिया I वे न केवल आदिवासियों के मसीहा थे, बल्कि राष्ट्रीय आंदोलन के भी नायक थे I भगतसिंह और बिरसा मुंडा दोनों लगभग 25 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि जो सम्मान भगत सिंह को प्राप्त हुआ वह सम्मान बिरसा मुंडा को प्राप्त नहीं हो सका I कला के माध्यम से आदिवासी समाज ने अपनी कला निष्ठा को प्रदर्शित किया है I आदिवासियों की विभिन्न लोककलाओं में प्रकृति का धूपछाँही सौष्ठव दृष्टिगोचर होता है I अर्चना मिश्रा ने अपने आलेख ‘कला और प्रकृति (प्रागैतिहासिक काल से अद्यतन)’ में आदिवासियों की लोककला और प्रकृति से उनके जुड़ाव पर शोधपरक विवेचन प्रस्तुत किया है I उन्होंने जनजातीय चित्रकला में प्रकृति के विभिन्न रंग-रूपों की व्याख्या की है I आदिवासी चिंतन के अनुसार आत्मा या चेतना केवल मनुष्यों में नहीं, बल्कि अन्य पशु–पक्षियों व पेड़-पौधों में भी मौजूद है । आदिवासी सदियों से प्रकृति की पूजा कर रहे हैं I आदिवासी समुदाय के लोग सूर्य, चन्द्रमा, नदी, पर्वत, पृथ्वी, झील, जलप्रपात, तारे, वन इत्यादि की पारंपरिक विधि से पूजा करते हैं। इनकी धारणा है कि कुछ अदृश्य शक्तियाँ सृष्टि का संचालन करती हैं, सुख–समृद्धि देती हैं, शांति एवं आरोग्य प्रदान करती हैं, फसलों की रक्षा करती हैं तथा क्रोधित होने पर हानि भी पहुँचाती हैं। श्री चौतन्य कुमार मीणा ने ‘जमीन ही आदिवासी समाज की एक मात्र संपत्ति’ शीर्षक आलेख में आदिवासियों की प्रकृति पूजा, स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों का योगदान, आदिवासियों के समक्ष चुनौतियाँ इत्यादि विषयों की तथ्यपरक विवेचना की है I अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में अनेक आदिवासी समूह रहते हैं जिनमें ग्रेट अंडमानी, ओंगी, जारवा, सेंटीनली, निकोबारी तथा शोम्पेन प्रमुख हैं I श्री कृष्ण कुमार यादव ने अपने आलेख में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में निवास करनेवाले आदिवासी समुदायों की जीवन शैली, संस्कृति और रहन-सहन का शोधपरक विवेचन किया है I प्रो. श्रवणकुमार मीना ने ‘भारतीय शास्त्रों, मिथकों में आदिवासी का विरूपीकरण’ शीर्षक आलेख में वैदिक साहित्य, रामायण, पुराण आदि में आदिवासियों की स्थिति का आकलन किया है I डॉ बाबूलाल मीना और डॉ आशा सिंह रावत ने ‘संस्कृत वांग्मय में आदिवासी और जनजातीय विमर्श’ और डॉ एन.टी.गामीत ने ‘आदिवासी कविताओं में चेतना का स्वर’ शीर्षक आलेखों में आदिवासी जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है I श्री हीरा मीणा ने ‘पुरखौती गीतों में मीणी मातृभाषा, संस्कृति और इतिहास’ शीर्षक आलेख में मीणा समुदाय में पुरखा लोकगीतों के काव्य सौंदर्य और मीणा संस्कृति का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया है I डॉ गुलाब चंद पटेल ने ‘गुजरात में जालियावाला बाग़ हत्याकांड से पहले हुआ था मानगढ़ आदिवासी हत्याकांड’ शीर्षक आलेख में एक ऐतिहासिक सच्चाई को उजागर किया है I जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के पाँच वर्ष पूर्व गुजरात के मानगढ़ के पहाड़ों पर आदिवासियों की निर्मम हत्या की गई थी, परंतु इतिहास में इस हत्याकांड का उल्लेख कम हुआ है और नई पीढ़ी अभी भी इतिहास की उस क्रूर घटना से अनभिज्ञ है I डॉ कुलदीप सिंह मीना और डॉ जनक सिंह मीना ने अपने आलेख में समकालीन हिंदी कविता में चित्रित आदिवासी जीवन का आकलन किया है I श्री रोहिताश कुमार और डॉ उमा यादव ने ‘राजस्थान की सहरिया जनजाति का सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन’ शीर्षक आलेख में सहरिया समुदाय के सामाजिक-सांस्कृतिक विशिष्टताओं को रेखांकित किया है I डॉ रेणुका चौधरी के आलेख में भारत के आदिवासी समुदायों के भाषिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य का तथ्यात्मक मूल्यांकन किया गया है I श्री वीरेन्द्र परमार के ‘असम की चाय जनजाति’ शीर्षक आलेख में असम में निवास करनेवाली चाय जनजातियों की जीवन शैली, संघर्ष, धार्मिक विश्वास और स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान का विश्लेषण किया गया है I डॉ जनक सिंह मीना और डॉ कुलदीप सिंह मीना की ‘आदिवासी समाज और साहित्य चिंतन’ शीर्षक पुस्तक इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इसमें साहित्य की विविध विधाओं के माध्यम से आदिवासी लोकजीवन को अभिव्यक्त किया गया है I यह पुस्तक शोधार्थियों के साथ-साथ आम पाठकों के लिए भी उपादेय है I इस महत्वपूर्ण पुस्तक के संपादन के लिए संपादक द्वय साधुवाद के अधिकारी हैं I
पुस्तक-आदिवासी समाज और साहित्य चिंतन
संपादक-डॉ जनक सिंह मीना और डॉ कुलदीप सिंह मीना
प्रकाशक-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली
वर्ष-2023
पृष्ठ-340
मूल्य-895/-