कविता

महात्मा कहलाने का अधिकारी

शान्ति-सौहार्द-त्याग-सद्भाव-धारी,
सबका भला चाहने वाला परोपकारी,
आनन्द की सरिता सबके मन में बहाए,
मन-वचन-कर्म से महात्मा वह कहलाए.

आत्मज्ञानी-कर्मवीर-सेवा भाव में मगन,
देशभक्ति की मन में हो जिसके लगन,
रहे परे अनुराग-विराग, हताशा-हुलास से,
आगे बढ़ता-बढ़ाता रहे आत्मविश्वास से.

धीरता-गम्भीरता-धारी, सत्पथ का प्रेरक,
माया-मोह, राग-द्वेष से विलगता-सम्प्रेषक,
वाणी में सत्यता-सौम्यता-मधुरता-धारी,
दीन-दुखियों-पीड़ितों-वंचितों का कष्ट-हारी.

शोषण से विरक्त प्रकृति का जो पोषक,
समुचित मान-सम्मान देने का उन्मोदक,
भीरुता से करे किनारा वीरव्रत-धारी,
महात्मा कहलाने का है वह अधिकारी.

तृष्णा-लोकेष्णा छल-कपट से हो विरक्त,
सरलता-विनम्रता-धारी अध्यात्म में अनुरक्त,
कण-कण में हर जीव में दिखे परमात्मा,
अखिल विश्व में वही कहलाए महात्मा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244