खुला दरवाजा
दामिनी शर्मा एक ऐसा नाम जिसे लोग बहुत सम्मान से लेते थे । निर्भीक, निडर और स्पष्ट बोलने वाली सबकी प्रिय एक रुतबा था उनका । परिवार को बहुत ही प्यार से और करीने से सींचा था । सीमित संसाधनों में अपने बच्चों के साथ साथ परिवार के अन्य बच्चों को भी अपने पास रख कर शिक्षा दिलाई । स्वयं भी उच्च शिक्षित थी पर अपनी नौकरी को महत्व ना देकर बच्चों का भविष्य बनाना प्रथमिकता थी । संयुक्त परिवार में रहने की आदत ने ही सबकी सहायता करना सिखाया था । दोनों बेटियों को उच्च शिक्षा दिला कर शादी करने के बाद बस बेटे की शादी का ही इन्तजार था । सबसे कहती बहू नहीं बेटी लाऊंगी जिससे मेरे पास रहे ।
रीमा को अपने बेटे आशू के लिये उन्होंने पसंद किया । रीमा मध्यम परिवार की शिक्षित लड़की थी । सारा प्यार दामिनी और मि. शर्मा ने उसके ऊपर उढ़ेल दिया । रीमा भी बहुत खुश थी और खुश भी क्योंं ना हो ससुराल में कोई बन्दिश ना थी । ननद अपने परिवारों में व्यस्त थी । आशू की छुट्टियां भी खत्म हो रही थी । दामिनी जी चाहती थी कि रीमा कुछ समय उनके पास रहे पर रीमा ने आशू से कहा कि वह अपने साथ ले चले। नयी शादी थी आशू भी चाहता था कि रीमा को साथ ही ले जाये । दामिनी ने भी खुशी खुशी साथ भेज दिया । सब कुछ सही से चल रहा था । मि. शर्मा भी रिटायर हो चुके थे । दामिनी और मि. शर्मा ने आशू के लिये फ्लैट दिलवा दिया जिससे उन दोनों को परेशानी न हो । धीरे धीरे करके बेटे की पूरी गृहस्थी सजा दी । दो बच्चों की दादी भी बन गयी। अभी कुछ समय से दो चार दिन को वह और मि.शर्मा जब भी बेटे के पास जाते रीमा का व्यवहार बदला हुआ लगता । यह सत्यता थी कि रीमा को उन दोनों का आना पसंद नहीं था । जब रीमा ने किसी बात पर कह दिया उसे बस अपने बच्चों और आशू से ही मतलब है। दामिनी बहुत सुलझी महिला थीं इस बात को सुनकर बिना प्रतिक्रिया के मि. शर्मा से कहा चलिये हम अपने घर चलते हैं । यह घर तो बहू का है। ये दोनों जब चाहे मेरे घर आ सकते हैं क्योंकि वहाँ आशू का जन्म और बचपन बीता है। यहाँ हमारा क्या है । मैं शायद अब नहीं आऊंगी । उस घर के दरवाजे हमेशा खुले हैं।
— डा. मधु आंधीवाल