भारत माता की मिट्टी में भारतीय संस्कारों की स्वर्णिम खान
भारत में जन्मे मानव की अंतरात्मा कहीं ना कहीं, कभी ना कभी, भारतीय संस्कारों के मूल्यों को लेकर जागृत जरूर है या एहसास जरूर दिलाती है। उन विपरीत लोगों के दिल में कहीं ना कहीं कभी ना कभी जरूर आएगा कि हम गलत थे। बस यही प्रमाण मिल जाता है कि भारतीय मिट्टी में ही मानवीय संस्कारों की जड़ कूट-कूट कर भरी है। इसका जीता जागता उदाहरण हमने पिछले दो सालों में भारतीय संकटकालीन स्थिति कोरोना महामारी की पीक स्थिति में हमें देखने को मिली थी कि किस तरह अनेक सामाजिक संस्थाएं,पड़ोसी अनजान शख्स,इस संकटकालीन स्थिति में एक दूसरे का साथ देकर मानवता का परिचय दे रहे थे। इस आपातकाल के समय में हर भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य हो गया था और अभी वर्तमान समय में उन विपरीत परिस्थितियों से सीख लेकर दिमाग ठंडा, दिल में रहम, जुबा नरम, आंखों में शर्म, जैसे मानवीय मूल्यों को सजगता, संयमता, सुदृढ़ता, सक्रियता, संकल्प के रूप में, सकारात्मकता के साथ, एक अनिवार्य कड़ी के रूप में अपनाना मानवीय मूल्यों को सजग रखने के लिए अनिवार्य हो गया है।
विश्व में अगर माननीय संस्कारों, मानवीय मूल्यों, परोपकार, धार्मिक आस्था, करुणा, दया, दिल में रहम, जुबान नरम इत्यादि अनेक शब्दों से हम माननीय संस्कारों की व्याख्या कर सकते हैं जो भारत की मिट्टी में कूट-कूट कर भरी है। साथियों मेरा ऐसा मानना है कि भारत में जन्में व्यक्ति के अंदर दया दृष्टि, परोपकार, धार्मिक आस्था, सामाजिक सहयोग, इत्यादि अनेक गुण जरूर भरे होंगे। हालांकि इसके विपरीत बहुत कम प्रतिशत ऐसे लोग मिलेंगे। परंतु मैं विश्वास से कह सकता हूं कि उनमें भी बेसिक गुण आंतरिक रुप में रग रग में समाए हैं। बस जरूरत है उनका उपयोग करने की।
आज हमारे पास अब अवसर है कि इन अनमोल मानवीय मूल्यों को अपने ऊपर हावी करें ताकि हमें भविष्य में इन माननीय मूल्यों का लाभ मिले। मानवीय जीवन में अनेक ऐसी विपरीत परिस्थितियां आती है जब काल रूपी विपत्तियां उस पर अटैक करती है, भविष्य में अगर किसी के ऊपर कोई निजी रूप से भी इस तरह के संकट की घड़ी आती है तो इन उपरोक्त मानवीय मूल्यों, संस्कारों, मंत्रों, के बल पर अपने निजी या व्यक्तिगत विपरीत परिस्थिति से जंग भी जीत सकते हैं।
हम दिमाग ठंडा, रखने को देखें तो सारी विपरीत परिस्थितियों विपत्तियों, आपातकाल परेशानियों, से जंग जीतने का यह कारगर और सटीक मंत्र है। दूसरे शब्दों में गुस्सा विपरीत परिस्थितियों का यह खाद पानी है। स्वाभाविक रूप से ऐसी मुश्किलों में मानव को गुस्सा आता ही है और अपना आपा खो बैठता है जो उसके इस मंत्र से हारने का कारण बनता है। मेरा मानना है कि हर अपराध का बेसिक कारण गुस्सा है जिसमें मनुष्य अपने आपे से बाहर होकर कुछ कर बैठता है फिर पछतावा होता है।
हम दिल में रहम, को देखें तो यह मंत्र भारतीय मिट्टी ने ही हमको दिया है।दूसरे की विपत्तियां, परेशानियां देख कर हमारे मन में मानवता जगती है, जिसमें उन विपत्तियों में घिरे लोगों की सहायता करने का भाव उत्पन्न होता है, जो हम अभी कोरोना काल में देख रहे हैं कि आज हर भारतीय एक दूसरे की सहायता करने उमड़ पड़े हैं कोई औपचारिक रूप से, तो कोई अनऔपचारिक रूप से याने छिपे रूप से सहायता कर रहे हैं, इसलिए हर मानव के दिल में रहम का भाव पालना नितांत आवश्यक व जरूरी है।
हम जुबा नरम, होने को देखें तो यह मंत्र भी भारतीय मिट्टी से ही उत्पन्न संस्कारों से मिलता है मुंह से अल्फाज हमेशा मीठे निकालें, कटु अल्फाज हमेशा कटुता और दुश्मनी को बढ़ाने का काम करते हैं। जो कम से कम भारतीय तो कभी नहीं चाहेंगे। हमेशा मुंह से शब्द नापतोल के और सकारात्मक औचित्य में निकलना चाहिए। यह संबंधों को प्रगाढ़य और मधुर करने में अहम रोल अदा करता है। यह संस्कारों रूपी अस्त्र विश्व प्रसिद्ध है कि भारत की वार्ता, संबोधन शैली, संप्रेषण शैली, हमेशा सकारात्मक और अर्थपूर्ण होती है। अतः हर भारतीय नागरिक को इस मंत्र को आपातकालीन अवस्था में अपनाना अनिवार्य है। जिसमें भविष्य की सुरक्षा का बोध है।
हम आंखों में शर्म को देखें तो हम बड़े बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं कि गलत आदमी कभी भी आंख मिला कर बात नहीं कर सकता। सच्चाई पर चलने वाले ही सच्चे देशभक्त और पारदर्शिता पूर्ण व्यक्ति होते हैं। हम दो साल पहले कोरोना आपातकाल में देख रहे थे कि मानव के प्राणों की रक्षा करने वाले महत्वपूर्ण मेडिकल संसाधनों, ऑक्सीजन, रेमीडेसिविर इंजेक्शन, दवाइयां, वेंटीलेटर, कंसंट्रेटर इत्यादि संसाधनों की कालाबाजारी गैंग, महामारी के खलनायक, काम कर रहे थे? क्या वे किसी से आंखों में आंखें डाल कर बात कर सकते थे? जो दूसरे मनुष्य के प्राण की कीमत पर नाजायज धन उगाने का काम कर रहे थे। उनकी आंखों में भी शर्म कभी नहीं हो सकती।अतः यह जरूरी है कि हम ऐसा कोई अस्वस्थ, गैरमानवतापूर्ण और दूसरों को दुख पहुंचाने वाला कार्य नहीं पर हमें अपनी आंखों में सच्चाई, ईमानदारी,नैतिकता, के गुणों और शर्म को के मंत्र को भी अनिवार्य रुप से अपनाना है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत माता की मिट्टी में भारतीय संस्कारों की स्वर्णिम खान। भारत माता की मिट्टी में मानवीय संस्कारों का भंडार – हर नागरिक द्वारा इन संस्कारों का तात्कालिक उपयोग ज़रूरी। विश्व में अगर मानवीय संस्कारों, मूल्यों, परोपकार, धार्मिक आस्था, करुणा, दया, दिल में रहम की बात होगी तो भारत का नाम प्रथम आएगा।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
मुश्किलें तुम्हारे दिन हैं तुम इतरा लो।।
हम भी भारतीय हैं यह सोच लो।
जंग हम ही जीतेंगे परिणाम तुम देख लो।।
— किशन सनमुख़दास भावनानी