फ़िक्रों में बेफ़िक्री
सुनो ये जो ज़िन्दगी जी रहे हो तुम
क़दम क़दम पे आँसू पी रहे हो तुम
सजाकर के यादों के पैरहन में रफ़ू
ज़हन की सारी तहें सी रहे हो तुम
ख़ुदा बनने की चाह लिए हो लेकिन
बोलो तो कभी इंसान भी रहे हो तुम?
दुनिया ये बदलना कहाँ मुश्किल है
ख़ुद में कितनी तब्दीली रहे हो तुम?
हमसा बनना कोई खेल नहीं “गीत”
क्या फ़िक्रों में बेफ़िक्री रहे हो तुम?
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”