सफर सुहाना
अपने अहम को न हावी होने देना
कोई वहम ना अपने दिल में लेना
उसकी अच्छाइयों को परख लेना
तुम्हें फिर वो अच्छा लगने लगेगा
ईर्ष्या को अंदर ना पलने तुम देना
उसकी काबलियत को भी सराहना
अपने अनुभव तुम उसे सब बताना
तुम्हें फिर वो अपना लगने लगेगा
दुख सुख में उसका साथ तुम देना
खुद बढ़ना और उसे भी बढ़ने देना
लंबा है सफर,साथ ज़रूर निभाना
सफ़र ये सुहाना,फिर लगने लगेगा
— आशीष शर्मा ‘अमृत ‘