ग़ज़ल
मुसाफिर बीच राहों में,अकेले छोड़ जाते हैं
तड़फता देखकर गम में,वहीं रुख मोड़ जाते हैं।
नुकीले शूल इस जग में, सदा महफूज रहते है
कि कोमल फूल हर कोई, मजे से तोड़ जाते हैं।
समझ ले दर्द बिन बोले, वही हमदर्द होता है
दिखे जो दर्द बेदर्दी, सभी मुख मोड़ जाते हैं।
भटकते उम्रभर इंसान, जो दौलत जुटाने में
विदा होकर जमाने से, यही सब छोड़ जाते हैं।
दुआ लेते सदा मधुजा, खुदा के वे फरिश्ते जो
दुखों की मार से टूटे, दिलों को जोड़ जाते हैं।
— नीतू शर्मा “मधुजा”