आध्यात्मिकता जीवन का आधार है
वैश्विक स्तरपर भारत को अनंत काल सदियों से आध्यात्मिक देश माना जाता है, क्योंकि हमारा हज़ारों वर्षों का इतिहास देखा जाए तो उसमें इसके प्रमाण मिलते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि दुनिया में जहां भी भारतवंशी होगा वहां आध्यात्मिकता का अंश ज़रूर होगा। आज के वैश्विक डिजिटल युग में मानवीय प्राणी अपने आर्थिक प्रगति और समृद्धि की ओर दौड़ पड़ा है जिसके कारण उसे एक मिनट की फुर्सत नहीं है, परंतु यह हमें भौतिक सुख़ तो दे सकती है लेकिन शाश्वत शांति नहीं! इसलिए हमें आध्यात्मिकता की ओर अपने कदम बढ़ाने होंगे। मेरा मानना है कुछ लोगों को यह गलतफ़हमी हो सकती है कि आध्यात्मिकता याने बुढ़ापे की क्रिया शुरू होना या सन्यासी ऋषि मुनि बाबा या गुरु के मंदिर या मस्जिद में अपने जीवन का कीमती हिस्सा या समय देना होता है, जो उचित नहीं है हमें आध्यात्मिकता को एक विस्तृत सोच के साथ उसकी जड़ों को समझना ज़रूरी है, ताकि हम आध्यात्मिक जीवन को अपनाकर दिव्य आनंद के द्वार खोल सकें। इसलिए आज हम अनेक बुद्धिजीवियों, विचारवक्ताओं रायशुमारी के विचारों के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, आध्यात्मिकता एक विराट फ़लो अनुभूतियों का सुखी सफल जीवन है।
हम आध्यात्म और आध्यात्मिकता को देखें तो, आध्यात्मिकता जीवन का आधार है। हमारे जीवन में आशा, आत्मविश्वास ,आत्म कल्याण और आपदा समाधान आध्यात्म द्वारा ही संभव है स्व की पहचान ही आध्यात्मिकता है, इसका किसी धर्म, संप्रदाय या मत से कोई संबंध नहीं है। आप अपने अंदर से कैसे हैं, आध्यात्मिकता इसके बारे में है। आध्यात्मिक होने का मतलब है, भौतिकता से परे जीवन का अनुभव कर पाना। अगर हम सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम-सत्ता के अंश को देखते हैं, जो आपमें है, तो हम आध्यात्मिक हैं।आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि हम अपने अनुभव के धरातल पर जानते हैं कि मैं स्वयं ही अपने आनंद का स्रोत हूं। आध्यात्मिकता मंदिर, मस्जिद या चर्च में नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही घटित हो सकती है। यह अपने अंदर तलाशने के बारे में है। यह तो खुद के रूपांतरण के लिए है। यह उनके लिए है, जो जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता के साथ जीना चाहते हैं। अस्तित्व में एकात्मकता व एकरूपता है और हर इंसान अपने आप में अनूठा है। इसे पहचानना और इसका आनंद लेना आध्यात्मिकता का सार है।
अगर हमको बोध है कि हमारे दुख, क्रोध, क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि हम खुद इनके निर्माता हैं, तो हम आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। हम जो भी कार्य करते हैं, अगर उसमें सभी की भलाई निहित है, तो हम आध्यात्मिक हैं। अगर हम अपने अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, ईष्र्या और पूर्वाग्रहों को गला चुके हैं, तो हम आध्यात्मिक हैं। बाहरी परिस्थितियां चाहे जैसी हों, उनके बावजूद भी अगर हम अपने अंदर से हमेशा प्रसन्न और आनंद में रहते हैं, तो हम आध्यात्मिक हैं। अगर हमको इस सृष्टि की विशालता के सामने खुद की स्थिति का एहसास बना रहता है तो हम आध्यात्मिक हैं। हमारे अंदर अगर सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए करुणा फूट रही है, तो हम आध्यात्मिक हैं।अगर हम किसी भी काम में पूरी तन्मयता से डूब जाते हैं, तो आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है, चाहे वह काम झाड़ू लगाना ही क्यों न हो। किसी भी चीज को गहराई तक जानना आध्यात्मिकता है। आध्यात्मिक व्यवहार, जिसमें ध्यान, प्रार्थना और चिंतन शामिल हैं, एक व्यक्ति के आतंरिक जीवन के विकास के लिए अभिप्रेत है, ऐसे व्यवहार अक्सर एक बृहद सत्य से जुड़ने की अनुभूति में फलित होती है, जिससे अन्य व्यक्तियों या मानव समुदाय के साथ जुड़े एक व्यापक स्व की उत्पत्ति होती है, प्रकृति या ब्रह्मांड के साथ, या दैवीय प्रभुता के साथ। आध्यात्मिकता को जीवन में अक्सर प्रेरणा अथवा दिशानिर्देश के एक स्रोत के रूप में अनुभव किया जाता है, इसमें, सारहीन वास्तविकताओं में विश्वास या अंतस्थ के अनुभव या संसार की ज्ञानातीत प्रकृति शामिल हो सकती है। लोग आध्यात्मिकता को जीवन-विरोधी या जीवन से पलायन मानते है। लोगों में भ्रामक धारणा है कि आध्यात्मिक जीवन में आनंद लेना वर्जित है और कष्ट झेलना जरूरी है। जबकि सच्चाई यह है कि आध्यात्मिक होने के लिए हमारे बाहरी जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।
हम आध्यात्मिकता के महत्वपूर्ण होने को देखें तो, यह क्यों महत्वपूर्ण है?सर्वप्रथम इसे क्रमबद्ध करते हैं वैज्ञानिक विज्ञान के बाद आता है, वैदिक विज्ञान। फिर उसके बाद आता है आध्यात्म। फिर उसके बाद आती है प्रकृति। और फिर अंत में आता है परम परमात्मा। अर्थात जब वैज्ञानिक विज्ञान निःउत्तर हो जाता है तब उत्तर देता है वैदिक विज्ञान। जब वैदिक विज्ञान निःउत्तर हो जाता है तब उत्तर देता है आध्यात्म। जब आध्यात्म निःउत्तर हो जाता है तब उत्तर देती है प्रकृति। और अंत में जब प्रकृति निःउत्तर हो जाती है तब उत्तर देता है परम परमात्मा। आध्यात्म के करीब आकर मनुष्य प्रकृति और परमात्मा को बेहद करीब से जान पाता है। इसीलिए आध्यात्मिकता महत्वपूर्ण है। असल जीवन में हम मनुष्य वैज्ञानिक विज्ञान को ही सम्पूर्ण संसार मानकर बैठे हैं यही वजह है की हम दुःखी हैं , पापी हैं , अहंकारी हैं , कुकर्मी हैं , भोगी हैं। वैज्ञानिक विज्ञान में कुछ भी ज्ञान नहीं है वह तो सिर्फ वस्तु भोग को बढ़ाता है। वस्तु भोग के दलदल से यदि कोई हमको बाहर निकाल सकता है तो वह है आध्यात्म। इसलिए हम आध्यात्म आपनायें और जीवन में सुखी व सदाचारी बनें भोगी नहीं। जीवन और मृत्यु एक साथ जन्म लेते हैं तथा अनवरत साथ रहते हैं। परंतु मृत्यु जीवनपर्यन्त जीव का पीछा किया करती है तथा उपयुक्त अवसर आने पर उसे दबोच लेती है और जीव का अंत हो जाता है। यह एक स्थापित सत्य एवं परिभाषित कृत्य है। जीवन के मूल्य हम निर्धारित नहीं करते। इसका निर्धारण काल चक्र करता है। इतिहास किसी को याद नहीं रखता और काल किसी को क्षमा नहीं करता। आज मानव वासनाओं की खाई इतनी गहरी हो गई हैं कि उसे पाटने के लिए कुबेर का वैभव और इंद्र का सामर्थ्य भी कम पड़ गया है। हम जीवन जीते है, उसका अनुभव भी करते है। कठिन से कठिन समय में भी जीने की अभिलाषा बनी रहती है। यह तृष्णा और पिपासा एक अंतहीन क्रिया है जो मृत्यु के साथ समाप्त होती है। इस यथार्थ को जानना एवं आत्म बोध होना ही अध्यात्म है।
हम आध्यात्मिकता की आवश्यकता को देखें तो, यदि किसी व्यक्ति के स्वभाव में जीवन, प्रकृति, मन, चेतना और समस्त अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं के प्रति एक ज़बरदस्त कौतूहल है, तो वह आध्यात्मिक है। यह समस्त अस्तित्व क्या है? मैं कौन हूं? जीवन, प्रकृति, आत्मा, परमात्मा आदि के परम रहस्य क्या हैं? यदि ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजने की भरपूर उत्कंठा आपके अंदर है तो आप आध्यात्मिक हैं। और हम जानना चाहते हैं कि जीवन में आध्यात्मिक होने कीआवश्यकता क्या है! सामान्य जीवन में आध्यात्मिकता की कोई आवश्यकता नहीं है। किन्तु आध्यात्मिकता, मनुष्य के उच्च स्तरीय गुणों में से एक है। भिन्न-भिन्न मनुष्यों में भिन्न-भिन्न नैसर्गिक प्रवृत्ति या गुण होते हैं। अपनी अंतर्निहित प्रवृत्ति के दम पर ही लोग वैज्ञानिक, दार्शनिक, लेखक, साहित्यकार, अर्थशास्त्री, इंजीनियर, डाक्टर, सैनिक, खिलाड़ी आदि बनते हैं। इसी प्रकार एक विशेष प्रकार की जिज्ञासु प्रवृत्ति मनुष्य को आध्यात्मिक जागृति के मार्ग पर अग्रसर कर देती है।
हम आध्यात्मिकता के एक दोहे की करें तो ,जब हम जग मे आए जग हसां हम रोए। ऐसी करनी कर चलो हम सोए जग रोए ।। यही आध्यात्मिक जीवन है न कि भगवा कपडे पहन कर समाज को त्याग दिया। हमारे धर्म के ग्रंथो मे कही भी पलायन वाद को बढावा नही दिया ।हमारे अधिकतर ऋषि गृहस्थ थे जो सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक व धार्मिक शिक्षा राजाओ को दिया करत थे।यह है आध्यात्मिक जीवन।
— किशन सनमुख़दास भावनानी