अंतिम सांस का अनुभव
महज एक सांस
जो अंतिम होती है,
सब कुछ खत्म कर देती है।
पर अंतिम सांस का अनुभव
कोई व्यक्त भी नहीं कर सकता,
करे भी तो कैसे
जब अंतिम सांस के साथ ही
वो चिरनिद्रा में सो जाता,
अपना धन, धर्म, ज्ञान, अनुभव
शानोशौकत, कद,पद, प्रतिष्ठा
रौबदाब, अमीरी, गरीबी,ऊंच नीच
साथ ही अंतिम सांस का अनुभव भी।
अब वो कुछ नहीं कहेगा
क्योंकि अब वो बोल ही न सकेगा
निर्जीव बन पड़ा रहेगा
मिट्टी में मिल जाने की प्रतीक्षा में
वो भी नितांत मौन
और हम कल्पना के घोड़े दोडाएंगे
साथ ही उसे अपने से सदा सदा के लिए
दूर करने की व्यवस्था संग
उसके अंतिम सांस के
अनुभव की परिकल्पना के
महज घोड़े दौडाएंगे
और यथाशीघ्र उसे श्मशान ले जाकर
जलाकर उसके अस्तित्व को भी मिटा आयेंगे
पर अंतिम सांस का अनुभव
कभी नहीं जान पायेंगे।
सिर्फ खुद अनुभव करेंगे
अपने अंतिम सांस के साथ
फिर हम भी मौन हो जायेंगे
आखिरी सांस का अनुभव
अनुत्तरित छोड़ जायेंगे।
ये सिलसिला चलता रहेगा
अंतिम सांस का अनुभव
सदा कोरा का ही कोरा रहेगा।
जिसने अनुभव किया
वो सदा के लिए मौन हो चुका होगा
फिर उसका अनुभव उसी के साथ
विदा जो हो चुका होगा।
सच ही तो है
अंतिम सांस का अनुभव
रहस्य था, रहस्य है और हमेशा
रहस्य ही रहेगा।