ग़ज़ल
चाँद को देख मैं मुस्कुराता रहूँ
तब खिली चाँदनी में नहाता रहूँ
देखते – देखते सज गया बाग ही
रोज़ ही मैं यहाँ देख आता रहूँ
तू सितारे दिखाती रहे रात भर
देख नगमे तभी गुनगुनाता रहूँ
डूब जा प्यार में तू अभी सिर तलक
आज खुद को तभी मैं भिगाता रहूँ
हो बहकता कदम – दर – कदम देखते
आज नज़रों से तुमको पिलाता रहँ
जो बहारों में तू खिलखिलाती रहे
तेरी खुशियों में आनंद पाता रहूँ
प्रेम तुझसे किया भूल सकता नहीं
मैं कलाबाज़ियाँ ही दिखाता रहूँ .
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’