कविता

बहुमत

बहुमत
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पंचतंत्र में लोकतंत्र की
कथा कहूँ मैं सुन लो आज
बहुमत कैसे खेल है करता
करता है यह कैसे  काज
सुंदरवन में एक उल्लू था
दिन भर सोता रहता था
रात मचाता धमा चौकड़ी
कर शिकार खुश होता था
चाँद सितारे नजर थे आते
सूरज से अंजान ही था
पर खुद को ज्ञानी वह कहता
खुद पर कुछ अभिमान भी था
एक दुपहरी वह सोया था
निज कोटर के अंदर
पास उसी के आ बैठा
ना जाने कहाँ से बंदर
भीषण गर्मी का मारा था
बंदर बड़ा ही भोला
याद किया ईश्वर को उसने
खुद ही खुद से बोला
“हे भगवन भीषण गर्मी है
जियें भला हम कैसे
सूर्य चमकता है नभ में
किसी आग के गोले जैसे”
सुनकर बंदर की बातें
उल्लू ने उसको हड़काया
“बात गलत है, माफी माँगो
चाँद को सूरज बतलाया”
पर बंदर भी एक घाघ था
फिर से उसको समझाया
“चाँद निकलता है रातों को
दिन में तुम्हें नजर आया ?
करो दवाई आँख की अपने
बात मेरी अब मान भी लो
रात में चंदा, दिन में सूरज
दिखते हैं ये जान भी लो”
सुनकर बंदर की बातें
उल्लू गुस्से से लाल हुआ
बिना बात की बहस में देखो
कैसे बड़ा बवाल हुआ
“चंदा देता शीतल किरणें
जग को रोशन करता है
झूठ बोलकर सूरज को क्यूँ
महिमामंडित करता है ?
नहीं यकीं तो साथ मेरे चल
लोगों से पूछवाता हूँ
तुझे दिखा जो सूरज या
चंदा तुझको बतलाता हूँ “
दोनों चलकर जा पहुँचे वहाँ
जहाँ बड़ा एक तरुवर था
उल्लुओं की बस्ती थी वहाँ
यह उल्लू उनका बंधुवर था
 बातें सुनकर के सारी
 पहले कुछ उल्लू हँसते हैं
कुछ बूढ़े उल्लू क्रोधित,
 बंदर को गाली बकते हैं
“चंदा को सूरज कहते तुम,
 मूढ़ अक्ल के कच्चे हो
 झूठ अधिक अब ना फैलाओ
 अभी नासमझ बच्चे हो”
ढेरों उल्लू थे एक तरफ
बंदर पड़ गया अकेला था
पर हार नहीं उसने मानी
आगे बढ़ गया झमेला था
क्रोधित उल्लू सोचे बंदर को
ऐसा सबक सिखाएंगे
चोंच से अपनी घायल कर
उसको हम स्वर्ग दिखाएंगे
पर उल्लू खुद बेबस हो गए
तेज धूप के होने से
अंधे सम सब हुए बिचारे
बंदर बच गया मृत होने से
 जान बची लाखों पाए
बंदर मन में मुस्काया था
मूर्खों से दूरी ही बेहतर
उसने खुद को समझाया था
मूर्खों का बहुमत हो तो फिर
बातें ऐसी भी होती हैं
रात को रात सभी जानें
तब दिन भी रातें होती हैं
बहुमत के दम पर ही अक्सर
नेता भी ऐसा करते हैं
दिखती थी खामी जिसमें कभी
फिर काम वही ये करते हैं
ध्यान से पढ़ कर इस किस्से को
मन में गहन विचार करो
मूर्खों से कभी ना बहस करना
निज बुद्धि पर ऐतबार करो

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।