कविता
सुख- दु:ख है जीवन के दो अंग
सुख में मन हर्षित रहे और दु:ख में सब बदरंग
सुख तो एक अतिथि है, रहे न हमेशा पास
आकर चल देता है और छोड़ जाता है एक सुखद एहसास
सुख में साथ निभाने आते हैं बहुत सारे रिश्ते
मगर जो दु:ख में साथ निभाते हैं वो होते हैं फरिश्ते
न दु:ख में तुम घबराना और न सुख में तुम इतराना
जिसने रखा धैर्य और संयम उसने जीत लिया जमाना
छल, कपट और बेईमानी से जो रहे दूर इंसान
उसे ही हर पल मदद करते हैं भगवान !
— मृदुल शरण