बदलते रिश्ते
शादी की बहुत दिनों बाद अनोखी अपने ननिहाल गई, वहाँ उसने देखा नानी का घर कच्चे मकान के स्थान पर, पक्की ईंटों का आलीशान बँगला बन गया था।
गाड़ी दरवाज़े पर जाकर खड़ी हुई, अनोखी ने कार से उतरते हुए घर के मुख्य द्वार की ओर क़दम बढ़ाए।
घर की कुछ महिलाएँ उसे देख और मन ही मन सोचने लगीं, ‘यह कौन है?’ और उसे पहचानने की कोशिश कर रही थीं।
तभी अनोखी हँसते हुए भाभी के पैर छू कर बोली, “लग रहा है आप हमको नहीं पहचान पा रही हैं, मैं आपकी शारदा बुआ की छोटी बेटी हूँ।”
भाभी कहने लगी, “अरे बच्ची! हम तुमको पहली बार देख रहे हैं। कितनी बार बुआ जी से कहे कि अनोखी को भी लेकर आएँ, उम्र का भी असर है बच्ची। नाना-नानी, मामा-मामी नहीं है तो क्या हुआ अभी तुम्हारी भाभी है।”
भाभी के बग़ल में कुछ और महिलाएँ थीं, अनोखी उनको देखे जा रही थी। भाभी ने परिचय करवाया, “आपके बड़े भतीजे हर्षित की पत्नी और ये दूसरी मोहित की पत्नी हैं।”
अनोखी भाभी से कहने लगी, “आपने कभी बताया ही नहीं, मेरे भतीजे सब कितने बड़े हो गए और इनकी शादियाँ भी हो गईं।”
अनोखी भाभी से नाराज़गी ज़ाहिर कर ही रहीं थीं, इतने में उसने देखा, छोटे बच्चे-बच्चियाँ उसे घेरे हुए हैं।
भाभी हँसकर कहने लगी, “यह सब आपके भतीजे के बच्चे हैं।”
बच्चे पूछने लगे, “आजू (दादी) आंटी मेरी क्या लगेंगी?”
अनोखी मुस्कुराकर कहने लगी, “मैं आप सबकी बुआ हूँ आप सब मुझे फुई भी बुला सकते हो!”
अनोखी महसूस कर रही थी, देखते ही देखते वक़्त के साथ रिश्ते भी बदल रहे हैं और इन रिश्तों के नाम भी बदल रहे हैं। चाचा से चाचू, ब्रदर से ब्रो, सिस्टर से सिस, ऐसे कई नाम हैं जो आज के दौर में बड़ी तेज़ी से लिए जा रहे हैं।
इतने में भाभी बोली, “चलो बेटा! घर के अंदर।”
भाभी भी अपनी भूल को स्वीकार कर कहने लगी, “ग़लती एक ही रिश्तों में नहीं होती है, हम दूसरों से अपेक्षा करते हैं और ख़ुद उनकी अपेक्षा पर खरे नहीं उतरते। मैं अपने बच्चों को रिश्तेदारों से दूर करती गई, आज मेरी बहुएँ आपको बेटा! पहचान ही नहीं रही थीं। इस बदलते परिवेश में अकेले जीने की आदत डाली ली थी। बेटा! तूने मेरी आँखें खोल दीं। हम नए रिश्ते बनाते जाते हैं और, पुराने रिश्तों को भूल जाते हैं, जब भी तुम्हारा जी करे मिलने आ जाया करो! और हम भी! बेटा! आएँगे।
“रिश्ते पौधों की तरह हैं, जितना इसमें खाद-पानी पड़ेगा, फूल उतना ही अच्छा निकलेगा।”
अनोखी ने हामी भरी, “हाँ भाभी! आप सही कह रही हैं। बदलते रिश्तों के साथ तालमेल बिठाकर हमें जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए। हम अपनों के आशीर्वाद के बिना अधूरे हैं, अपनों का प्यार हमें सदैव मिलता रहे।
जब तक हम एक दूसरे से मिलेंगे-जुलेंगे नहीं, तब तक रिश्तों में प्रेम पनपेगा नहीं।”
हम सभी अपने नए रिश्तों के साथ पुरानी रिश्तों को भी सहेजें, उनके साथ भी अपने संबंधों को मज़बूत बनाएँ।
— चेतना प्रकाश चितेरी