कविता

सत्य की तपिश

सत्य की तपती आग पे
चल पड़े हैं मेरे दो कदम
अंजाम चाहे जो भी हो
रूकने ना पाये मेरे दम

पापों की दलदल में खिलना
अब हमें मंजूर नहीं है   साईं
बेईमानों के इस गुलशन में
महकना मंजूर नहीं है साईं

चल पड़ा हूँ कॉटों की पथ पर
भले पैर लहू लुहान हो जाये
चल पड़ा हूँ बगावत की पथ पर
भले कील पॉवों में चुभ जाये

सीने में धधक रही गम की ज्वाला
जो बेईमानों ने जग में जलाई है
जब तलक ना बुझा लूँ पापी को
जो जग ने उन्हें उपजाई है

जीवन तो आना जाना है   पल में
कौन रहने यहाँ वो कोई आया है
तेरे आने जाने का लेखा ही तुम्हें
तेरे कमौं पे लिखा समाया है

चोर मचा रहा शोर यहाँ पर
उनका कर विरोध एक जुट हो
कोई मोरनी नाच रही वन में
उस महफिल को अब बंद करो

अय रोक उन्हें जो चूस रहा
तेरे अधिकार की दौलत को
रे रोक उन्हें जो शोषण करता
तेरे अरमान की शोहरत को

कब तलक मौन बैठा रहेगा
कुछ् उपाय तो सोंचो मेरे भाई
कब तलक तुँ लुटते देखेगा
लव तो खोलो मेरे      साईं

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088