मुक्तक/दोहा

फागुन घर-घर बाँटता

मानव मन में प्रीति की, बहे सदा रसधार।
अँजुरी भर-भर पीजिए, अमिय नेह हर बार।।
जब समरसता की बहे, सुरभित मलय बयार।।
शुचि समता सद्भाव से, उपवन सुखद बहार।
वन वाटिका गाँव नगर, छायो शुभ मधुमास।
अबीर गुलाल हाथ ले, फागुन रचता रास।।
चौपालों में सज गये, फगुआरों के रंग।
फागों की सुर-ताल में, लगे थिरकने अंग।।
आत्ममुग्ध तरुणी हुई, निरखे छवि जल ताल।।
मन मनोज नर्तन करे, दे दे सरगम ताल।।
फागुन घर-घर बाँटता; खुशी, प्यार, मनुहार।
मन भर-भर सब लूटिए, बासंती उपहार।।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]