फागुन घर-घर बाँटता
मानव मन में प्रीति की, बहे सदा रसधार।
अँजुरी भर-भर पीजिए, अमिय नेह हर बार।।
जब समरसता की बहे, सुरभित मलय बयार।।
शुचि समता सद्भाव से, उपवन सुखद बहार।
वन वाटिका गाँव नगर, छायो शुभ मधुमास।
अबीर गुलाल हाथ ले, फागुन रचता रास।।
चौपालों में सज गये, फगुआरों के रंग।
फागों की सुर-ताल में, लगे थिरकने अंग।।
आत्ममुग्ध तरुणी हुई, निरखे छवि जल ताल।।
मन मनोज नर्तन करे, दे दे सरगम ताल।।
फागुन घर-घर बाँटता; खुशी, प्यार, मनुहार।
मन भर-भर सब लूटिए, बासंती उपहार।।
— प्रमोद दीक्षित मलय