शिव-वन्दना
देवाधिदेव हे महादेव!, हे शिवशंकर त्रिपुरारी!
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी।।
हे शिवशंकर! हे परम सत्य!,तुम हो जग के रखवाले।
तुम हो कल्याणक परम ताप,अब दूर करो दिन काले।।
दया,नेह करना हम पर तुम ,टारो तुम विपदा सारी।
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी।।1
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भोले भंडारी,महादेव,तेरी महिमा का गायन।
सारे नर-नारी खुश होते,करके तेरा सब पूजन।।
भूतप्रेत के हो तुम स्वामी,हो तुम तो प्रभु अधनारी।
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी।।2
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शीश तुम्हारे चंदा शोभित ,डमरू बोले है डमडम।
हर दानव को तुमने मारा,रखते हो चोखा दमखम।।
आदिदेव, हे प्रभु सोमना !,सुखमय कर दो नर-नारी।
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी।।3
कैलाशी तुम, अविनाशी तुम,हो प्रभु तुम तो नटनागर।
तुम कर सकते हो गिरिमर्दन,पल में पी सकते सागर।।
तुम से ही जीवन चलता है,पलती है दुनिया सारी।
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी।।4
मातु भवानी शक्ति संग हैं,तुम तो संताप मिटाते।
तुमसे ही जीवन हर्षित है,नित हर विकार मिट जाते।।
तुम हो गतिमय,तुमसे ही लय,तुम तो हो गंगाधारी।
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी।5
गौरा के सँग हुये विवाहित,सारे ही खुशी मनाते।
बेलपात को सारे ही तो,तुम पर तो सदा चढ़ाते।
शिवजी पर तो युगों युगों से,सारे ही हैं बलिहारी।
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी।6
अंधकार में तुम उजियारा,सूरज जैसे तो लगते।
तुम्हें देखकर सारे दुख तो,डर-डरकर तो कहिं भगते।।
तुम हो भोले,मरघट-स्वामी,संग है उमा सुकुमारी। ।
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी।7
डमरू तुम्हरा डम डम बजता,भूतप्रेत तो नित नाचें।
पंडित सारे महिमा गायें,शिवपुराण को नित बाँचें।।
संग तुम्हारे नंदी रहता,हो नित तुम मंगलकारी।
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी।8
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे