बाल कहानीलघुकथा

करिश्मा

पोते की शादी में दादी जैसे गा-बजा-नाच रही थी, कोई समझ ही नहीं सकता था कि वह छियासी साल की होंगी. अभी थोड़े दिन पहले ही उनके दिल का ऑपरेशन हुआ था, लेकिन युवा दिल का जोश कम होने में नहीं आ रहा था.
“अभी इतना नाच रही है, इंग्लैंड की मेम आ रही है, वह जो रंग दिखाएगी इसका फुदकना बंद हो जाएगा!” एक पड़ोसिन ने दूसरी से कहा.
कान की सुरली दादी ने सुनी-अनसुनी करके फिर से ढोलक पर थाप दी और गाने लगी- “मत कर सासू बेटा-बेटा, अब ये बन्ना मेरा है.” भगवान के भरोसे थी, खुश थी. किसी के कहने से पोते का दिल थोड़े ही न तोड़ना था!
शादी हो गई, एक महीना रह कर बहू जाने वाली हो गई, पर न दादी का न उनकी बहू का मन नवेली बहू से अलग होने को हो रहा था. सबको जल्दी आने के वादे से आश्वस्त कर, वह बन्ने के साथ इंग्लैंड चली गई.
एक महीने के बाद ही अचानक उसके ससुर जी को हार्ट अटैक आया, सासू मां ने तुरंत बहू को फोन कर दिया.
“मम्मी जी, आप जरा भी चिंता मत कीजिएगा. आप अस्पताल जाने की तैयारी कीजिए, कुछ मिनट में ही एम्बुलैंस आ जाएगी, तब तक पापा जी को इस तरह से मालिश कीजिए.” बहू ने तसल्ली भी दी और प्राथमिक चिकित्सा की युक्ति भी!
सचमुच कुछ मिनट में ही एम्बुलैंस आ गई, डॉक्टर्स को आवश्यक पेमेंट मिल चुकी थी, वे ऑपरेशन के लिए तैयार थे, ऑपरेशन सफल हो गया, वे हंसते-खेलते घर आ गए, तब तक बहू-बेटा भी आ गए.
“देखा अंग्रेजी मेम का करिश्मा! ससुर की बीमारी की सारी हिस्ट्री ले गई थी, डॉक्टर्स के फोन नं. और भी न जाने क्या-क्या!, जब तक उसका बन्ना ऑफिस से आए-आए, उसने ससुर को नई जिंदगी दे दी!”
“सचमुच ऐसा करिश्मा तो देसी बहू भी न कर सके!” ये बोल थे उस पड़ोसिन के, जो दादी का फुदकना बंद करवा रही थी!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “करिश्मा

  • डॉ. विजय कुमार सिंघल

    बहिन जी, नमस्ते

    यह सत्य नहीं है कि दुष्यन्त पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा था। वास्तव में उनसे भी बहुत पहले एक भरत हुए थे, जिनका नाम था जड़भरत। वे ऋषभदेव के पुत्र थे। वे भी चक्रवर्ती सम्राट थे। उनके नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा था। कृपया सुधार कर लें। वैसे कहानी अच्छी है। पर हम गलत जानकारी नहीं छाप सकते।

    • *लीला तिवानी

      विजय भाई, नमस्कार. अच्छा हुआ आपने सचेत कर दिया, आगे से हम ऐसे कथनों में अधिक सावधान रहेंगे. बारंबार आपका हार्दिक आभार.

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