ग़ज़ल
कोई नगमा गुनगुनाकर ज़रा सा इश्क रख देना
अश्क दो-चार बहाकर ज़रा सा इश्क रख देना
रूह मेरी सुकूं पा जाएगी इतने में ही दिलबर
तुम मेरी कब्र पर आकर ज़रा सा इश्क रख देना
फैलाऊँ हाथ मैं जब भी दुआओं में तेरे आगे
मेरे हाथ में लाकर ज़रा सा इश्क रख देना
जहां रखी हैं मैंने तेरी सब यादें करीने से
वहीं तुम भी मुस्कुराकर ज़रा सा इश्क रख देना
ज़िंदगी के तनहा रास्तों पर तुम मेरी खातिर
दुनिया से छुप-छुपाकर ज़रा सा इश्क रख देना
— भरत मल्होत्रा